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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ३३.१ देवराजशकेन्द्रवक्तव्यतानिरूपणम् चन्द्रः सूर्यो वा 'एवं महिडीए' एव महर्द्धिकः एतादृशधर णेन्द्रवन्महासमृद्धिशाली 'जाव' यावत् 'एवइयं च ' एतावच पूर्वणितावधिकञ्च 'पभू' प्रभुः समर्थः 'विकृवित्तए' विकुर्वितम् विकुर्वणां कर्तु समर्थ इति पूर्वेणान्वयस्तदा 'भंते । भदन्त ! 'सक्केणं' शक्रः खलु प्रथमसौधर्म देवलोकस्वामी, 'देविंदे' देवेन्द्रः, 'देवराया' देवराजः ‘केमहिड़ीए' कीदृशमहर्द्धिसम्पन्नः, 'जाव' - यावत् 'केवइयं चणं' कियच्च खलु कियदवधिकमिति यावत्, 'पभू' प्रभुः विकुन्त्रित्तए' त्रिकुर्वितुम् । भगवानाह 'गोयमा ! सक्केणं' इत्यादि । हे गौतमगोत्रीय अभिभूते ! शक्रः खल 'देविदे' देवेन्द्रः 'देवराया' देवराजः 'महिड्डीए' महर्द्धिकः अतिशयसमृद्धिशाली, 'जाव महाणुभागे' यावत - महानुभागः महाप्रभावशाली वर्तते, पाच्छन महाद्युति- महावल - महायशो महासौख्यः 'सेणं' स खलु देवेन्द्रः सिंदे जोइसराया एवं महिडीए जाव एवइयं च णं पभू चिडव्वित्तए' ज्योतिपेन्द्र ज्योतिपराज चन्द्र अथवा सूर्य ऐसी घड़ी ऋद्धि के अधिपति है और इतनी घडी विकुर्वणा करने के लीये शक्ति के भंडार हैं तो 'भंते' हे भदन्त ! सक्केणं देविंदे देवराया के महिडीए जाव केवइयं चणं पभू विकुव्वित्तए' जो प्रथम सौधर्मदेवलोक का स्वामी शकेन्द्र है कि जो देवेन्द्र और देवराज है कैसी बडी ऋद्धिवाला है और कितनी बडी विक्रिया कर सकने में समर्थ है ? इस प्रकार अग्निभूति का प्रश्न सुनकर भगवान्ने कहा 'गोयमा' हे गौतम गोत्रीय अग्निभूति 'सणं देविंदे देवराया महिडीए जाव महाणुभागे ' देवेन्द्र शक्रराज शकेन्द्र अतिशय समृद्धिशाली है - यावत् वह महाप्रभावसंपन्न है । यहां यावत् शब्दसे " महाद्युति, महाबल, महायश महासौख्य" इन पदोंका ग्रहण हुआ है । वह शक्रेन्द्र वहां ३२ यत्तीस एवं महिडीए जाव इयं च णं पभू विकृवित्तए " ज्योतिषरान ज्योतिषेन्द्र यद्र અથવા સૂર્ય આટલી બધી ઋદ્ધિવાળા છે અને આટલી બધી વિધ્રુણા શકિત ધરાવે છે तो " से " डे सहन्त " सक्केण देविंदे देवराया के महिड़ीए नाव केवइयं च णं पभू त्रिकुव्वित्तए” पडला हेवडोउना स्वाभी, देवरान, हवेन्द्र शडे ठेवी ઘણી જે ભારે સમૃદ્ધિવાળા છે ? તે કેવી વિશ્વ ણા કરવાને સમર્થ છે ? ત્યારે મહાવીર प्रभु अग्निभूतिने या प्रभा भवाण साध्या " सक्केण देविदे देवराय । महिड्डीए " ४त्याहि डे गौतम अग्निभूति देवेन्द्र देवराय श धाए or tरे समृद्धि વાળ છે અહી 45 यावत् " पहथी नीयेना सूत्रा हरायो छे महाधुवि, महाचल महायश महासौख्य " ते महाद्यति, भडामण, भडायश, भडासु भने ८३
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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