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________________ ८२ भगवती सूत्रे टीका - द्वितीयो गणधरः अनिभृतिः घरणेन्द्रमकरणवर्जितज्योतिष्कदेवविशेषसम्बन्धिसमृद्ध चादिमुपश्रुत्य शकेन्द्रसम्बन्धिसमृद्धयादि जिज्ञासया भगवन्तं पृच्छति - 'भंते 'ति । हे भदन्त ! 'भगवं' भगवान, दोच्चे गोयमे' द्वितीयो गौतमः गौतमगोत्रीयः 'अग्निभूई' अभिभूतिः गणधर : 'अणगारे ' अनगारः, 'समणं' श्रमणं, 'भगवं' भगवन्तं ' 'महावीरं' 'बंद' वन्दते स्तौति, 'नमसह ' नमस्यति नमस्करोति 'नंदित्ता' नन्दित्वा 'नमंसित्ता' नमस्कस्य ' एवं ' वक्ष्यमाणमकारेण 'वयासी' अवादीत् अकथयत्- 'जहणं' यदि खलु निश्रयेन 'भंते' 1 भदन्त ! 'जोइसिंदे' ज्योतिपेन्द्रः 'जोइसराया' ज्योतिपराजः ही जानना चाहिये | (एसणं गोयमा ! सस्स देविंदस्स देवरणो इमेयावे विसर विसयमेत्तेणं वुइए, नोचेच संपत्तीए विकुश्विसु वा, विकुव्विर वा विकुव्विस्सइ वा ) हे गौतम ! शकेन्द्र की विकुर्वणा करने के विषय में जो ऐसा कहा गया है वह सिर्फ उसकी शक्ति का प्रदर्शन करनेके लिये ही कहा गया है इस प्रकार की विकुर्वणा करके उसने आजतक न ऐसा किया है और न वह वर्तमान में ऐसा करता है और न भविष्यत् में वह ऐस करेगा ही || सू० ९ ॥ टोकार्थ - द्वितीय गणधर अग्निभूति धरणेन्द्र के प्रकरण में वर्णित ज्योतिषिकदेव सम्बन्धी समृद्धि आदि को सुनकर अब वे प्रभु से शक्रेन्द्र संबंधी समृद्धयादि को जानने की अभिलाषासे पूछते हैं'भंते! त्ति' हे भदन्त ! ऐसा कहकर पहिले उन्होंने प्रभु की वंदना की, उन्हें नमस्कार किया, बाद में प्रभु से उन्होंने विनयावनत होकर इस प्रकार कहा- हे भदन्त ! 'जइणं भंते !" हे भदन्त । यदि 'जोड़समन्. (एस णं गोयमा सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णा इमेयारूवे विस विसयमेते बुझ्ए नो चेत्र संपत्तीए विकुव्विसु वा विकुव्वर वा विकुव्विस्सइ वा ). હે ગૌતમ ! દેવેન્દ્ર શકની વિધ્રુણા શંકતની આ જે વાત કરવામાં આવી છે તે તેનું સામર્થ્ય ખતાવવા માટે જ કહેલ છે પણ આ પ્રકારની વિકુĆણા પહેલાં તેણે કરી નથી અને વિષ્યમાં કરશે પણ નહીં ! સૂ. ૯૫ ટીકા -ધરણેન્દ્ર પ્રકરણમાં વણુ બ્યા પ્રમાણેની જ્યોતિષિક દેવાની સમૃદ્ધિ વિકુણા આદિનું વર્ણન સાંભળીને બીજા ગણુધર અગ્નિભૂતિને શક્રેન્દ્રની સમૃદ્ધિ આદિ लघुवानी अभिलाषा थाय छे. " भंते ति " तेथी" है बहून्त " मेनुंसोधन ने તેએ મહાવીર પ્રભુને વંદા નમસ્કાર કરે છે ત્યાર ખાદ તેઓ વિનયથી તેમને આ प्रभा पूछे छे.- " जणं भंते " है लहन्त ले " जोइसिंदे जोइसराया:
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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