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________________ ७४ भगवती सूत्रे " ' क्रियया समत्रघातेन निर्मितविविधनागकुमारदेव देवी मभृतिभिस्तिर्य कसं येयान द्वीपसमुद्रान् व्याप्तुं तस्य सामर्थ्य प्रतिपाद्यते । तदाह- ' तिरियं संखेज्जे' इत्यादि । तिर्यक् संख्येयान 'दीन - समु' द्वीपसमुद्रान्, 'महिं नागकुमारीदिं' बहुभिः नागकुमारैः देवेः नागकुमारीभिः देवीभिश्व | 'जाव' यावत् इति एतद्यावत्पदेन चतुर्थेन धरणेन्द्रस्य त्रिकुणाशक्तः स्वरूपमात्रमेतत्मतिपादितम् नतु यथोक्तार्थसम्पादनेन कदाचित् व्यकुर्वीत् त्रिकुर्वति, विकुर्विति वेति गम्यते । तदाह- 'विउन्मिति वा' इति । तथा 'सामाजिया' सामानिका देवाः, 'तायत्तीसा प्रायखिशा गुरुस्थानीयास्त्रयस्त्रिंशदेवाः, 'लोगपाला' चतुःसंख्यकाः सोमादिलोकपालाः, 'अग्गमहिसीओ य' 'अग्रमहिष्यश्व 'तहेच' तथैव 'जहा' यथा 'चमरस्स' चमरस्य, अर्थात् धरणेन्द्रस्यापि चमर रूपोंसे इस संपूर्ण जंबूद्वीप को भर सकता है उसी प्रकार वह तिर्य ग्लोक में संख्यात द्वीप और समुद्रोको भर सकता है। इसी विषयको 'तिरियं संखेज्जे दीवसमुद्दे वहुहिं नागकुमारी हिं ।" ' जात्र विउन्वि संति' पाठ द्वारा यह प्रकट किया है कि इस प्रकारसे वह धरणेन्दकी केवल विकुर्वणाका स्वरूप मात्र प्रतिपादित किया गया है । परन्तु उसने इस तरहसे आजतक अपनी विकुर्वणाशक्तिका प्रयोग नहीं किया । न वह इस रूपमें अपनी विकुर्वणशक्तिका प्रयोग वर्तमान में करता है और न वह इस रूपमें इस शक्तिका प्रयोग भविष्यत्कालमें भी करेगा । 'सामाणिया देवा तायत्तीसा, लोगपाला, अग्गमहिसीओ, तहेव जहा चमरस्स' सामानिक देव, गुरुस्थानीय त्रायस्त्रिंशक देव, सोमादि चार लोकपाल, एवं पदेवियांये सब पदार्थ धरणेन्द्र के ऐसे ही हैं जैसेके ये सब चमर के हैं । इसी विपयका उपसंहार ने गरी ६४ शड़े छे तिरियसखेज्जे दीवसमुद्दे वहुहिं नागकुमारीहिं जाव विउन्त्रि संति " या सूत्रपाठे द्वारा मे मताववामां भाव्यु छेठे धरन्द्रनी विदुर्वाणा शक्ति કેટલી બધી છે તે બતાવવાને માટે જ ઉપરનું વન ક" છે. પણ તેણે પેાતાની તે પ્રકારની વિપુણા શકિતના પ્રયાગ ભૂતકાળમાં કદી કર્યાં નથી, વમાનમાં કદી કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં કદી કરશે પણ નહીં सामाणिया देवा तापतीसा लोगपाला अग्गमहिसीओ तहेत्र जहा चमरस्स ધરણેન્દ્રના સામાનિક દેવે ગુરુ સ્થાનીય ત્રાયશ્રિંશક દેવા લેાકપાલ અને અશ્રમહિષી (પટ્ટરાણીઓ)ની ઋદ્ધિ આદિનું વર્ષોંન ચમરના સામાનિક દેવાત્રાયઐિશકરવા લા પાલે અને પટ્ટરાણીઓ પ્રમાણે જ સમજવું હવે આ સૂત્રને ઉપસ’હાર કરતા સૂત્રકાર કહે છે 11
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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