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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीकाश.३ उ.१ अनिभूते वायुभूति प्रति चमरऋद्रिस्वरूपवर्णनम् ५१. वन्दित्वा नमस्यित्वा "जेणेव तच्चे गोयमे वायुभूतीभणगारे" येनैव तृतीयो गौतमो वायुभूतिरनगारः 'तेणेव उवागच्छह ' तेनैव उपागच्छति, उपागत्य "तच्चं गोयमं वायुभूति अणगारं एवं वयासी" तृतीयं गीतमं वायुभूतिमनगारम एवमवादीत्-एवमुक्तवान् ‘एवं खलु गोयमा' ! एवं खलु गौतम !-हे वायुभूते ! "चमरे अनुरिंदे अमुरराया एवं महिडीए तं चेव एवं सव्वं अपुढवागरणं णेयव्यं" चमरः अमुरेन्द्रः अमरराजः एवं महर्द्धिकः तच्चर एवं सर्वम् अपृष्टव्याकरणं ज्ञातव्यम्-चायुभूतिना अपृष्टः सन्नेव अग्निभूतिः चमरादि पट्टमहिपी. टीकार्थ-'भगवं दोच्चे गोयमे भगवान् द्वितीय गणधरने 'समणं भगवं महावीरं वंदई नमंसह' श्रमण भगवान् महावीर स्वामीको पंचगंग नमनपूर्वक नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दना नमस्कार करके 'जेणेव तच्चे गोयमे वाउभूई अणगारे जहां तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ये 'तेणेव उवागच्छद' वहां पहुंचे। उवागच्छित्ता वहां पहुंच कर उन्होंने 'तच्चं गायमं चाउभूई अणगारं एवंवयासी' उन तृतीय गौतम वायुभूति अनगार से ऐसा कहा-'एवं खल गोयमा' हे वायुभूते ! 'चमरे असुरिंदे असुरराया' असुरेन्द्र असुरराज चमर 'एवं महिड्डीए' एसी बडी भारी ऋद्धिवाला है । 'तं चेव एवं सध्वं अपुट्ठवागरणं णेयव्वं' द्वितीय गणधरने जो तृतीय गणधर वायुभूतिसे चमरेन्द्र की विभूति आदि के विपयों जैसा कि वर्णन इसका उपर कियाजाचुका है जो ऐसा ही कहा सो वह सब तृतीय गणधरने उनसे पूछा नहीं था- अतः इसे अपृष्ट व्याकरण कहा है । द्वितीय समय- "भगवं दोच्चे गोयमे" मी गप२ लगवान मतिभूतिये "समणे भगवं महावीरं वंदह नमसइ" श्रम मावान महावीर स्वाभान पांय भागा नभावान नभः४२ ४ा. "वंदित्ता नमंसित्ता" वाया नमार शन "जेणेव तच्चे गोयमे वाउभई अणगारे" ori alon U२ वायुभूति मगार का हता, त्यां "तेणेव उवागच्छ” मा गया. "उवागच्छित्ता" यirva तभर "तच्चं गोयम वायुभई अणगारं एवं वयासी" तेत्री गौतम वायुभूति मारने २मा प्रमाणे ह्यु- "एवं खलु गोयमा ! उपायुभूति ! "चमरे असुरिंदे अमुरराया" मसुरेन्द्र मसु२२१०४ A२ " एवं महिडिए" uplor मारे અદ્ધિસપન છે. અહીં સૂત્ર એકથી સુત્ર ચારમાં આવતું ચમરેન્દ્રથી લઈને અમરેન્દ્રની પટ્ટરાણુઓ સુધીનું જે વકતવ્ય આવ્યું છે તે કહેવું જોઈએ. ત્રીજા ગણધરવાયુન પૂછયા વિના જ આ વાત અગ્નિભૂતિએ તેમની પાસે પ્રકટ કરી હતી તેથી તેને FEATHERE છે તેમને गगारे ॥ ३ હે ગૌતમ मारपाको में अपरिसेस भंते एवं) पर्यन्त
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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