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________________ ८४२ मनस्तीहो 'भाव-चिसि' यावत् मिति, गावतरणात् 'तत्पासिका', दमाः , पारस देवेन्द्रस्प देवराजस्प वेधमणस्य महाराजस्य भागाउपपात - पवन - निरने इति समागम् । सर्वाग्येष भौत्पातिकानि कार्याणि वैश्रमणस्पे पर मरन्तीस्या-'मम् सीचे दी' इत्पादि । जम्नदीपे दीपे 'मदरास पायरस' मन्दरस्य पर्वतस्प 'दाहिणण' दक्षिणेन दक्षिणदिग्भागे 'नाइ इमाई' यानि इमानि बो यस्य माणानि कार्याणि 'गमुप्पज्जति' ममुस्पधन्ते, वान्येयार- 'तन' तथपा'भयागरा इना, अप (मोड) आफरा इस या, 'तउगागारा इना, अधुमाकरा अनि घा, प्रपुपा राजानाम् आफरा इत्यर्थ 'तमागरा इबा, ताम्राकरा इति वा, मय तन्मपिया' उमफी भक्तिमें सत्पर रहते। जाव मिति उसके पक्षमें रहते है और उसके आधीन रहते है। इस तरह पे सपके सय देव दवेन्द्र देवराज शक्रके वेश्रमण महाराजकी आमा पालनमें, सेवा करने में, पचन और निर्देशकी आराधनामें लगे रहते है । यही पाठ यदा यावत् शन्दसे ग्रहण किया गया है। समस्त दी औत्पासिक कार्य वैश्रमण महाराज की जानकारी में ही होते हैं इस पात को अव सूत्रकार प्रकट करनेके लिये सत्र कहते 'जीधे दीये' इत्यादि गनदीप नामके इस डीपमें 'मदरस्स पव्ययस्स) मदरपर्वतकी 'दाहिणण' दक्षिण दिशामें, दक्षिण दिग्मागमें 'जाइ इमाई' जो ये अमीर प्रकट किये जानेवाले कार्य 'समुप्पजति' उत्पम होते रहते है जहा' जैसे कि 'अयागराइ या' लोहेकी खानें, 'तउया. गराइ घा, रोगकी खानें 'तपागराइ वा' ताकी स्वाने, 'एव' इसी हितमा शो 'भाष चिति' मना ५ छ, भने साधीन रहेन રીતે, એ સબળા દેવ, રમણ લાપાની આજ્ઞા પાળે છે, સેવા કરે છે, વચન અને निश मानुस२४- सूत्रा6 मला 'जाव' ५४ सय छ હવે સરકાર એ બતાવે છે કે સમત ત્પતિત કાર્ય વેરામ મહારાજની જાનકારીમાં જ થાય છે એ વાત સૂત્રકાર નીચેના સૂત્રો દ્વારા પ્રકટ કરે – से दीjali नामना niuमा 'मदरस्स पध्ययस्स' २ ( २) नारिणा शिशिम (नाश भाइ समप्पज्गंति' नी माया મજમના જે જે કર્યો કર્યા કરે છે તે વિક્રમણ મહારાજથી અજ્ઞાત નથી એવો સ બ ધ समरको 'समहा' तीन प्रभाव - 'मयागरा वा' ani , 'तउयागरा था' ४६ मा 'सपागराइ पा' तामान माल पर
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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