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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श ३. उ. १ सामानिकदेवर्दिविपये भगवदुत्तर ७ प्रमु. खलु गौतम ! हे गौतम ! " चमरस्म अमुरेंदस्स अमुररण्णो एगमेगे सामाणियदेवे केवलकप्प जीव दीव पहुहिँ असुरकुमारेहि देवेडिंय देवीडिय" चमरम्य अमुरेन्द्रस्य असुरगजम्य एक सामानिकदेव केवलफरूप जम्बूद्वीप दीप घडमिरमुरकुमार देव देवी भिश्व "आउण्ण विउविण्ण उवस्थड सपड फुड अबगाढावगाद फरेत्तए" आयीर्णम् न्यतिकीर्णम उपस्तीर्णम् सस्तीर्णम् स्पष्टम् अवगाढावगाढ कर्तुम् आकीर्णमित्यारभ्य अवगाढावगाहपर्यन्तशटानामर्यस्तु पूर्वमुत्रे प्रदर्शित , 'अदुनर च ण गोयमा !' अथोत्तरञ्च ग्वलु गौतम ! हे गौतम ! अथानन्तरम् 'पभू चमरम्स अमरिंदस्स अमुररष्णो एगमेगे सामाणियदेवे तिरियमसखेज्जे दीवममुद्दे यहिं अमुरकुमारेहिं देहि य देवीस्यि आइण्णे विइपिण्णे उवत्यहे सयढे फुढे अवगाढावगाटे यरेत्तए 'प्रभु चमरम्य अमुरेन्द्रस्य अमुरराजस्य एक सामानिकदेव तिर्यग्भमख्यातान द्वीपसमुद्रान् बहुमिरमुरकुमार दवेध देवीमिम आफीर्णान व्यतिमीणान उपस्तीर्णान सस्तीर्णान् स्पष्टान् अवगाढावगाढान् फर्तुम्-एवमेव चमरस्य एफैर सामानिकोदेवो वैफ्रिय'केवलकप्पं 'जबूदीव दीव' इस जमीप नामक प्रथम दीपको 'यटिं' अनेक 'असुरफुमारेहिं असुरकुमारोंके रूपो से और 'देवीहिं' देवियोंके रूपोंसे आकीर्ण, व्यतिफीर्ण, उपस्तीर्ण, सरतीर्ण, स्पृष्ट और अवगाढायगाढ फरने के लिये समर्थ है इन सभी शन्दाका अर्थ पहिले मूत्र में कर दिया गया है अतः यहांसे देव लेना चाहिये । 'अदुत्तर च ण गोयमा' यहा से लगायर 'विकुन्मिस्सति वा तक का सूत्र पाठ स्पष्ट अर्थवाला है फिर भी इस पाठका सक्षिप्त अर्य इस प्रकार से है-हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमरफा जो एकर सामानिक देव हे घर जैसे चमरेन्द्र अपनी घिक्रिया से क्रिय समुद्धात छारा उत्पादित अनेक असुरकुमार देयोंसे और देपियोसे सभुधातीन ते सामानि देव " फेवल्यप्प जयदीप दीव भभात Maluने । "वहिं भमुरकुमारेहिं ने मसभा भने "देविही" वामाना ३२वा આધ, વ્યતિકી સસ્તી, ઉપપ્તીણ પૃષ્ટ અને આવગાહિત કરવાને સમર્થ છે (भा Aहान म पटेaन मानायाछ) “अदुप्चर च ण गोयमा!" त्यite એટ જ નહીં પણ હે ગૌતમ! અસુરેન્દ્ર, અસુરરાજ ચમરને પ્રત્યેક સામાનિક દેવ પિતાની વૈકય શક્તિ દ્વારા વિકિય સમવાત કરીને ઉત્પન્ન કરવા અનેક અસુરકુમાર રેવે અને દેવીએથી તિકના અસખ્યાન દ્વીપ અને સમુદ્રોને આકર્ણ વ્યતિકી,
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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