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________________ भगवतीसरे टीका-सम्मति असुरफुमारेन्द्रस्य सामानिषदेवविपये पृष्टस्य अमिभूतेस्त्तरयति भगवान 'गोयमा' इत्यादि । “गोयमा चमरस्म अमरिंदम्स अमुररणो" गौतम चमरस्य असुरेद्रस्य अमुरराजस्य "सामाणिया देवा मरिडिया" सामानिका देवा महर्दिया 'जाव' पावत-यावत्पदेन-महाधुतिया महावला महायशस महासौख्याः महानुभागा वर्तन्ते "ते ण तस्य साण साण भत्रणाण" ते खलु तत्र स्षेपां स्वेपो भवनानाम्-निज निज भवनानाम् “साण साण सामाणियाण" स्वर्ण स्वेषा सामानिकानाम् स्व स्व मामानिकानाम् “साण साण अग्गरिसीण"स्वास स्वासाम् अग्रमहिपीणाम्-स्त्र स्त्र पट्टराशीनाम् "जाव दिवाई भोगमोगाइ राम माणा विहरति" यावत दिव्यान भोगमोगान् अञ्जाना विहरन्ति, अन यारस्पदेन तिहणां परिपदाम् सप्तानाम् अनीकानाम् सप्तानाम् अनीकाधिपतीनाम् आत्मरक्षक टीकार्य-इस सूत्र द्वारा अग्निभूति के प्रश्न का जो उनोने असुरकुमारेन्द्र के सामानिक देव के विपयमें प्रभु से पूछा है उत्तर दिया गया है। इसमें प्रमु ने कहा 'गोयमा' हे गौतम गोनियमिभूति ! 'चमरस्स असुरिंद स्स असुररण्णो' असुरेन्द्र असुरराज घमर के 'सामाणिय देवा' जो सामा निक देव हैं वे 'महिडिया' महर्दिक हैं। 'जाव' पदसे यहा "महरा शुप्तिका महायला महायशम यहासौख्या महानुभागाः" इन पदों का प्रहण हुआ है । 'तेण सत्य साण माण भवणार्ण' थे सामानिक देव अपने २ भवनों के सामाणिय देषाण' सामानिक देवों के साण २ अग्गमहिसीण' अपनी २ अग्रमहिपियों के ऊपर प्रभुत्व करते हुए यावत् 'दिव्याई भोगमोगाई' दिप भोगों को 'मुजमाणा विहरति भोगते रहते है । यहा यावत् पदसे "तिमृणा परिपदा,सप्तानाम् ટાકર્ણ - આગલા સૂત્રમાં અસુરે અસુરરાજ શમના સામાનિક દે વિષે બોતમ સ્વામીએ પૂછેલા પ્રશ્નનો ઉત્તર આ સૂત્રમાં માપવામાં અાવ્યે છે – મહાવીર પ્રભુ ગોતમ સ્વામીને જવાબ આપે છે કે આયુરન્દ્ર અસરરાજ ચમરના સામાનિ રે "महिडिया" H! दिवा है "नाव (पन्त)" पी ली नाना पa ५९ ४१ 02-"मगपुसिका , मरायला , महापसा, मासौख्याः, महरानभाषा" तसाभानि व भ gfdual, भय मला, म यशपा, म अमवा भने म अqurn " सेण तस्य साण साण भरणाम" ત્યાદિ તે સામાનિક દે પિત પિતાના_ભવને_પર પિતા પોતાના સામાનિક ર પર, પિત પિતાની પટ્ટરાણી પર આધિપત્ય ભગવે છે અને દિવ્ય ભેબે ભગવે છે यावत् ५४थी नानी Suz पाना B. “ तिमी परिषदा, सतानाम
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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