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________________ स्थानाङ्गसूत्रे नवरदिप विनागने ममर्थायाः कन्धेल्पजीवनेन ज्ञानायतिचारासेवनेन या समन्टन यमनारगलनात पञ्जिपन्निस्सारो यः स पुलाक उच्यते इति । उत्तंचात्र " जिन प्रणीतादागमान सदैवाप्रतिपातिनी ज्ञानानुमारेण क्रियानुष्ठायिनो लब्धिमुपजीवन्तो निर्ग्रन्याः पुलाकाः भवन्ति " इति । चायं लब्धिपुलामाऽऽसेवनापुलाकभेदेने द्विविधो ज्ञेयः १। तथावकुमा-गर्ग यमयोगाद वकुश:-गरीरोपकरणविभूपादिना शवलचारित्रः । अय मोहनी यक्षय प्रन्युयुक्तः शरीरयकुशोपकरणवकुशभेदेन द्विविधः । तत्र मी लब्धिकी प्राप्तिसे अथवा जानादिक्रमें अतिचार के आसेवन से सकल मंयम रूप मारके गल जाने के कारण जो पलञ्जि (पलाल ) की तरह मारसे रहित होता है, ऐसा वह साधु पुलाक कहलाता है । कहा भी है--" जिनप्रणीतादागमात् अवाप्रतिपातिनो ज्ञानानुसारेण नियानुष्टायिनो लब्धिमुपजीवन्तो निग्रन्थाः पुलाकाः भवन्ति" जो जिन प्रणीत आगम के अनुसार सदा अपनी क्रियाएँ करता है, एवं उसीका जो श्रद्वाल होता है और जो लविधवाला होता है वह पुलाकमुनि है। यह पुल्टाक लब्धिपुलाफ और आसेवना पुलाक के भेद से दो प्रकार का है, जो शरीर और उपकरणको विभूषा आदि से शबल चारित्रवाला Fता है और हमीसे जिमता संयम यकुग होता है, अतिचार सहित होता, ऐमा माधु या कहा गया है, यह वकुश शरीर बकुश और उपकरण चकग के भेद से दो प्रकारका है। इनमें जो कर,चरण का એવી લબ્ધિની પ્રાપ્તિ વડે, અથવા નાનાદિકમાં અતિચારનું સેવન કરવાથી અલ સાયમ રૂપ રાગ ઝરી જવાને કારણે પરાળની જેમ સારરહિત હોય છે, थे। माथुने ५ प्रहे छे ५५ छ है " जिनप्रणीतादागमात् मदैवा प्रनिपानिनो मानानुसारेण कियानुष्ठायिनो लब्धिमुरजीवन्तो निर्ग्रन्यो पुलाका भवन्ति " साधु A Gril 14 अनुसार पातानी यास। ४२ છે, અને તેના પ્રત્યે જે શ્રદ્ધાવાળે હેય છે, અને જે લબ્ધિવાળો હોય છે, તે ભાઇને પુલામુનિ કહે છે તે પુવાકના લબ્ધિ પુલાક અને આસેવના પુલા नाकमा नाय . જે શરીર અને ઉપકરને વિભૂષિત કરવાને કારણે શબલ (દષિત) રાત્રિા ય છે અને તે કારણે જેને સંયમ બકુશ હિય છે-અતિચાર મરિન ર ય છે, તેવા અને કુશ કંડ છે. બકુળના બે પ્રકાર પડે છે– (૧) કરીર બળ અને (૨) ઉપક! બકુશ જે સાધુ હાથ, પગ આદિનું
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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