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________________ . . . . . . . , स्थामारो ३४६ " पठक पाठकश्चैव ये चान्ये तत्वचिन्तकाः। " : सर्वे व्यसनिन' सन्ति । यः क्रियावान् स पण्हितः । १।" इति. स पुनर्बुधः-विवेकसम्पन्नमनस्त्वात् पण्डितो भवति,- इति मथमः १, तथा-एको बुधो भवन्नपि विवेकषिकलमनस्त्वादयुधो भवतीति द्वितीयः २, तथा--एकः सन्क्रियारहितत्वावुधः सन्नपि विवेकसम्पन्नमनस्त्वाद् वुधो भवतीति तृतीयः ३, तथा-एका सत्क्रियाविवेकैतदुभयरहितत्वादबुधः सन्मयुधो भवतीति चतुर्थः ।। (४१)। " चत्तारि पुरिसजाया ?" इत्यादि स्पष्टम् , नवरम्-एको बुधः-सक्रियत्वात् पण्डितो भवति स पुनर्बुधहृदयः-बुध-सदसद्बोधसम्पन्न हदयं मनो यस्य स तथा भवति विवेककारकमनस्त्वात् १, . . घुध इस प्रथम भंगमें लिया गया है उक्तंच--" पठकः पाठकश्चैव" इत्यादि-हे भव्य जो पढानेवाला है, पहलेवाला है, तथा जो तत्वोका चिन्तवन करनेवाले हैं, वे सब व्यसनीहैं। पपिडत तो वही है जो क्रियावाला है, दूसरा वह पुरुष जो बुध होता हुआ भी विवेक विकल मन. वाला होता है वह द्वितीय भंगमें लिया गया है। तीसरा पुरुष वह जो सक्रिया रहित होनेसे अवुध होता हुआ भी विवेक सम्पन्न मनवाला होले धुध होता है, ऐसा यह पुरुप तृतीय भंगमें लिया गया है। और जो सस्क्रिया और विवेक इन दोनोंसे रहित होता है वह अयुध अयुध ऐसे चतुर्थ भाग लिया गया है (४१) ।। फिरभी- चत्तारि पुरिहजाया" इत्यादि-पुरुषजात चार कहे गये हैं जैसे बुध बुध हृदय १ बुध अवुध हृदय २ अबुध बुध हृदय ३ एवं " पठक पाठकश्चैव " त्याहि-"3 २४ ! २ ५४न ४२ना। छ, ५४न કરાવનારા છે તથા તેનું ચિન્તન કરનારા છે, તેઓ તો વ્યસની છે. પંડિત તો તેને જ કહી શકાય છે કે જે ક્રિાસંપન્ન હોય છે. (૨) જે પુરુષ બુધ હેવા છતાં પણ વિવેકશૂન્ય મનવાળે હોય છે તેને “બુધ-અબુધ” રૂપ બીજા ભાંગામાં ગણાવી શકાય છે. (૩) જે પુરુષ સકિયા- રહિત હોવાથી અબુધું હોવા છતાં પણ વિકસંપન્ન મનવાળે હોવાથી બુધ હોય છે તેને MYध-सुध" ३५ श्रीan inwi भूठी शाय छे...(४)-२ १२५ सहिडયાથી પણ વિહીન હોય છે અને વિવેકથી પણ વિહીન હોય છે તેને “અબુધ मध" ३५ याथा Rinभा भूमी शय छे. १४१८ . . " चत्तारि पुरिसजाया " त्याहिनीय प्रभाये यार १२ना पुरा ५ -(१) सुध-बुध दृश्य, (२) भुय-अमुधहस्य, (3) अमुधधक्ष्य अने (४) समुध-मसुधाइय.
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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