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________________ सुधा टीका स्था० ४ उ०४० १६ पुरुषजातनिरूपणम् ३४३ चत्वारि पुरुषजातानि यज्ञवानि, तद्यथा चुधो नामको बुधः, बुधो नामै - कोsar: ४, ( ४१ ) । चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - बुधो नामैको बुधहृदयः (४२) | चत्वारि पुरुरजातानि मज्ञप्तानि तद्यथा- आत्मानुकम्पको नामैको नो परानुकम्पकः ४, ( ४३ ) || सू० १६ ॥ मैं टीका - ' चत्तारि पुरिसजाया ' इत्यादि पुरुषजातानि चत्वारि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा - एकः पुरुषो निष्कृष्ट : - दुर्बल: - तपसा कृशशरीरो भवति, पुनः स निष्कृष्टः-भावतः कृशीकृतकषायत्वादुपशान्तचित्तो भवतीति प्रथमः १, तथाrat निष्कुष्टः सन्नपि भावतोऽजित कषायत्वादनिष्कृष्टः- चञ्चल मनोवृर्त्तिभवतीति पुनः पुरुष विशेषोंका निरूपण करते हैं'चत्तारि पुरिसजाया' इत्यादि सूत्र १६ ॥ टीकार्थ- पुरुष जति चार कहे गये हैं- जैसे कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो निष्कृष्ट २ होता है । कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो निष्कृष्ट अनिष्कृष्ट होता है । कोई एक ऐसा होता है जो अनिष्कृष्ट निष्कृष्ट होता है । और कोई एक ऐसा होता है जो अनिष्कृष्ट अनिष्कृष्ट होता है ४ । तपसे जिसका शरीर कृश हो गया है ऐसा वह पुरुष दुर्बल पदवाच्य हुआ है ऐसा हुआ भी वह वंश कषायको करलेनेसे उपशान्त चित्तंवाला होता है तो वह प्रथम भंग में लिया गया है १| तथा कोई एक पुरुष जो तपस्यासे कृश (दूवला) शरीरवाला होने पर भी यदि कषायों पर विजय नहीं पाता है तो वह चंचल मनोवृत्तिवाला द्वितीय भगमें પુરુષવિશેષાનું નિરૂપણું આગળ ચાલે છે— " चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्तां ” इत्याह-- (सूं' १६) टीअर्थ-पुरुषोना · नीचे प्रभाऐ यार प्रहार ह्या छे- (१) निष्ठुष्ठ-निष्पृष्ट, (२) निष्ठुष्ट्-अनिष्टृष्ट, (3) अनिष्कृष्ट - निष्कृष्ट भने (४) निष्पृष्ट-अनिष्ठुष्ट તપને લીધે જેનું શરીર કુશ અથવા દુખ`ળ થઈ ગયું હોય એવા पुरुषने निष्ठष्ट' हे પહેલાં ભાંગાનું સ્પષ્ટીકરણુ~તપને લીધે જેનુ શરીર કૃશ થઇ ગયેલુ હોય છે એવા સાધુ જે કાચા પર કાબૂ રાખીને ઉપશાન્ત ચિત્તવાળા થઇ જાય તેા તેને “ નિકૃષ્ટ-નિષ્કૃષ્ટ ” રૂપ પડેલા ભાંગામાં ગણાવી શકાય છે. (૨) જે સાધુનુ* શરીર તપને લીધે કૃશ થઇ ગયેલુ હોય છે, છતાં પશુ જે કષાયા પર વિજય મેળવી શકતા નથી એવા ચંચળ વૃત્તિવાળા સાધુને નિષ્કૃષ્ટ—અનિષ્કૃષ્ટ ” રૂપ ખીજા લાંગામાં મૂકી શકાય છે. (૩) જે પુરુષ "" "
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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