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________________ ४ स्थाना वनविणामि' ति-प्रत्युपानविनागीति प्रत्युत्पन्नस्य-तत्काले एव सम्मानप्यानो विनाशो चत्र भवति वाच्यतया स प्रत्युत्पन्नविनाशी यधाचिट गवस्तुविशेष शिप्यस्याक्तिमुपलभ्य दुष्करतपश्चरणविहारादी नियोकर शिपम्यागनिकारण विनागनीयमित्येवं प्रत्युपनविनागनीयता साध. पचारमा प्रत्युत्पत्रविनाशिनातता भवति । अथवा आत्मा अर्ता अमूतन्यादिपमानना ननोऽकन ये माधित अनुवापत्तिलक्षणदोपस्य विनाशायोच्यते वामा कर भवनि कथंचिन्मुन्यात् , देवदत्तवदित्यनुमानेन तत्कालोत्पन्नेना. मनोडर धमपि नीयते इति भवति प्रत्युत्पन्नविनाशिताया ज्ञातमिति समाप्त मदमारणाभिय ज्ञानम् ॥ १ ॥ 'पयनविणामिति" प्रत्युपन्नका (तत्काल में ही जायमान वस्तुका बिना ri पर वापरूप होता है वह प्रत्युपन्न विनाशी है जैम पाई गुन यातु विशेपमें शिप्यको अशक्तिको जानकर उसे दुष्कर तप अरण विहार आदि में नियुक्त करता है इस विचारसे कि " शिष्यकी अगनि.का कारण विनष्ट करना चाहिये " इस तरह प्रत्युपन्नकी बिनाशनीयताका माधक होनेसे हममें प्रत्युत्पन्नविनाशिज्ञातता जोतीअश्या-" आत्मा अमृत होनेसे अकर्ता है। इस अनुमानमाग आत्मामें अमर्तृत्व साध्य करके इस अकर्तुत्यापत्तिरूप दोपका विनाश करने के लिये जय ऐमा कहा जाता है कि आमा कथित मन होने से देवदत्तकी तरह कर्त्ताभी है, इस प्रकार मनमानापन्न अनुमानसे जो आत्माका अमृतत्व हटा दिया जाता पा प्रत्युत्पन्न विनाशिताका ज्ञात है। हम प्रहारसे यहां तक आहरणके विगामिनि 'न्युननी-तसे नयभान परतुना विनाश જપ ૧૫ . છે ને દુષ્ટાતને પ્રત્યુત્પનવિનાશી ” કહે છે જેમકે કે પિમાં શિઘની અશક્તિને જીને તેને દુષ્કર તપશ્ચર, Me.. ३. मास ४२५॥ ५४ तमना गोवा या डाय in la nir मा३ विनय ४२ नसणे" मारे - વિનાશ કરવામાં સઘક લેવાથી તેમાં પ્રત્યુત્પન વિનાશી 1-" भा 141 मत," 21 अनुमान द्वारा ...... न मातृत्वापत्ति ३५ ॥ विना ४२. " .. ५. .. आई " चित्त (यसरी प्रा. ___ ५... ..... 42 ID अमृत ४२ 11.. ..: ers . . मी
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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