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________________ स्थानाशासूचे कंगमोनेगे पत्तियं करेइ ३, अपत्तियं करेमीतेगे अपत्तियं कोड 2 ।२। चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे पत्तियं करइ णो परस्त १, परस्स णाममेगे पत्तियं करेइ णो अप्पणा० १, ।। चनारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-पत्तियं पवेतामीतेगे पत्तियं पवेसेइ १, पत्तियं पवेसामीतेगे अपत्तियं पवेसेइ० ४, चत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे पत्तियं पसंइ णो परस्स, १, परस्स णाममेगे पत्तियं पवेसेइ णो अपणो २-४ ॥ सू०२ ॥ छाया-नवारः पक्षिगः प्राप्ताः, नद्यया-रुतसम्पन्नो नामैको नो रूपस. पत्रः १, स्पसम्पनो नाम को नो रुतसम्पन्नः २, एको रूपसम्पन्नोऽपि रुतस अब मृत्रकार दान्तिक भावसे पुरुषजात का निरूपण करते हैं चनारि परग्वी पगत्ता-इत्यादि-२ सवार्य-रनी चार प्रकार के कहे गयेहैं, जैसे कोई एक पक्षी ऐसा होता है, जिम का गब्द नो आनन्द दायक होता है पर-वह स्वयं सुन्दर आकार वाला नहीं होता है -१ । कोई एक पक्षी ऐसा होता है जो रूप में ना सुन्दर है :पर-उममा शब्द आनन्द दायक नहीं होता है-२। पो एक पली पेमा होता है जो रूप में भी सुन्दर होता है औरહવે માત્ર ખાન અને દાર્શનિક મૃત્ર દ્વારા પુરુષોના પ્રકારો . " पारि पानी पगचा " त्या:__ -21 न प्रसाद या मारा -(1) 5 ५सी मेj ' - दाय , सुह२ लातु नया. (1) કે કે ૧૫મી એ હાથ છે કે જે સુંદર હોય છે પણ તેનો અવાજ ५९९५: it. (3) मे ५ युदाय छ २ देणापमा
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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