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________________ सुधा टीका स्था०४३०३ सू०३० कन्थकट तेन पुरुषजातनिरूपणम् ११ ___ " एवं कुलसंपण्णेण य वलसंपण्णेग य ४" इति-एवं-यथा-जातिसम्पन्नेन जयसम्पन्नेन च सह चतुर्भङ्गो प्रोक्ता तथा-कुलसम्पन्नेन च वलसम्पन्नेन च चतुभेङ्गी भणनीया, तथाहि-चत्वारः कन्यकास्तद्वत् चत्वारि पुरुषजातानि च भवन्ति, तद्यथा-कुलसम्पन्नो नामैको नो बलसम्पन्नः १, बल सम्पन्नो नामैको नो कुलसम्पन्नः २, एकः कुलसम्पन्नोऽपि बलसम्पन्नोऽपि, ३, एको नो कुलसम्पन्नो नो वलसम्पन्नः । ४ । (७) " कुलसंपण्णेण य रूवसंपण्णेण य" इति-कुलसम्पन्नेन रूपसम्पन्नेन च सह चतुर्भङ्गी प्राग्वद्भणनीयाः, तथाहि-चत्वारः कन्थकाः-तद्वत् चत्वारि पुरु सातवें सूत्र में जैसी जातिसम्पन्न और जयसम्पन्न पदोंको जोडकर छठे सूत्र में चतुर्भगी बनाई गई है वैसी है चतुर्भगी कुलसम्पन्न और बलसम्पन्न इन दो पदोंको जोड़कर बनाई गई है, जैसे कोई एक कन्धक ऐसा होता है जो कुलसम्पन्न होता हुआ भी बलसम्पन्न नहीं होता है १ कोई एक कन्थक बलसम्पन्न हुआ भी कुलसम्पन्न नहीं होता २ कोई एक कन्थक उभयसम्पन्न भी होता है ३ और कोई एक कन्थक ऐसा होता है जो न कुलसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न होता ४ इसी प्रकारसे पुरुषों में भी कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो कुलसम्पन्न होता हुआ भी बलसम्पन्न नहीं होता है १ कोई एक ऐसा होता है जो बल सम्पन्न होने पर भी कुल सम्पन्न नहीं होता २ कोई एक ऐसा होता है जो उभयसम्पन्न होता है ३ और कोई एक ऐसा भी होता है जो उभय सम्पन्न नहीं भी होता है ४ (७) સાતમા સૂત્રમાં કક–અશ્વને નીચે પ્રમાણે ચાર પ્રકાર કહ્યા છે– (૧) કેઈ એક કન્યક કુલસંપન હોય છે, પણ બલસંપન હેતે નથી. (૨) કે એક કન્થક બલસંપન્ન હોય છે, પણ કુલસંપન્ન હેતે નથી. (૩) કેઈ એક કથક કુલસંપન્ન પણ હોય છે અને બલસંપન્ન પણ હોય છે અને (૪). કેઇ એક કથક કુલસંપન્ન પણ હોતો નથી અને બલસંપન્ન પણ નથી. એજ પ્રમાણે દાર્જીન્તિક પુરુષના પણ નીચે પ્રમાણે ચાર પ્રકાર પડે છે– (૧) કેઈ પુરુષ કુલસંપન્ન હોય છે, પણ બલસપન હેતે નથી, (૨) કેઈ પુરુષ બલસંપન્ન હોય છે, પણ કુલસંપન હેતે નથી. (૩) કઈ કુલસંપન્ન પણ હોય છે અને બલસંપન્ન પણ હોય છે. (૪) કોઈ કુલસંપન્ન પણ હોતું નથી અને બલસંપન પણ હોતે નથી.
SR No.009309
Book TitleSthanang Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages636
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size36 MB
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