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________________ सुधा टीका स्था० ४ उ०१ सू० १८ पुरुषस्वरूपनिरूपणम् ५०७ वज्ज उदीरेइ णो अपणो २, अप्पणो णाममेगे वज्जं उदीरेइ परस्सवि ३, अप्पणो णाममेगे बज्ज णो उदीरेइ णो परस्सवि"४ एका कश्चित्पुरुषः, पररय=अन्यसम्बन्धि अवद्यम् उदीरयति उपदेशादिना, नो आत्मनः, आत्मकल्याणभावना रहितत्वात् २, एक:-कश्चित् स्व-परयोरवधम् उदीरयति, स्व-परकल्याणभावनावत्त्वात् ३, एका अपरः पुरुष आत्मपरयोरवद्यादि नो उदीरयति विमूढत्वात् ४॥ ३॥ " चत्तारि" इत्यादि-पुनः पुरुषजातानि चत्वारि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा--एकः -कश्चित्पुरुषः, आत्मनः-स्वस्य अवयं-पापं कर्म उपशमयति-उपशान्तं करोति, होने से उदीरित नहीं करता है १ इसमें अन्य भङ्गात्रय इसी प्रकार से उद्भावित कर लेना चाहिये “परस्त णाममेगे वज उदीरेइ, णो अपणो" २ " अप्पणो णाममेगे वजं उदीरेइ परस्स वि-"३ अप्पणो णाम मेगे वजं णो उदीरेइ णो परस्त वि-४ | कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो दूसरों के अवद्य को उपदेश आदि द्वारा उदीरित कर देता है पर अपने कर्म को आत्मकल्याण करने की भावना से रहित होने के कारण उदीरित नहीं करता है-२ तथा कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो स्व और पर दोनों के अवद्य को उदीरित करता है। क्यों कि-ऐसा पुरुप स्व और-पर दोनों का कल्याण कामुक होता है ३ एक कोई पुरुष ऐसा होता है जो न अपने अवद्य को उदीरित करता है, और न परके अवद्य को उदीरित करताहै। क्योंकि-वह विमूढ (विवेक विकल) होताहै। ४३। "चत्तारि" इत्यादि इस सूत्र द्वारा जो चार प्रकार के पुरुष प्रगट किये गये हैं પ્રત્યે તે ઉદાસીનવૃત્તિ રાખતા હોય છે. એ જ પ્રમાણે વિચાર કરીને બાકીના ત્રણ પ્રકારનું પણ અહીં કથન થવું જોઈએ. तत्र Hin (41) मा प्रभाव है-" परस्प णाममेगे वज्ज उदीरेइ, णो अप्पणो” (२) पुरुष मन्यना सवयन ५देश माह 43 सीFરિત કરે છે, પણ પિતાના અવઘને ઉરીરિત કરતો નથી. કારણ કે તેનામાં मात्मयानी भावनाना ४ मा राय छे. " अप्पणो णाममेगे वज्ज उदीरेइ, परस्स वि" (s) योन Aqधर रित रे छ भने अन्यना અવદ્યને પણ ઉદરિત કરે છે, કારણ કે તે સ્વ અને પરનું કલ્યાણ ઈચ્છે છે. “ अप्पणो णाममेगे वजं णो उदीरेइ, णो परस्स वि" ४ पुरुष याताना અવને પણ ઉદીક્તિ કરતા નથી અને અન્યના અવને પણ ઉઠીરિત કરતે કરતું નથી, કારણ કે તે વિમૂઢ હોય છે,
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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