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________________ ६४७ % 3D सुधा का स्था०३ उ० १ २०१६ कालविशेषनिरूपणम् भवव्यतिव्रजनं च कालविशेष एव स्यादिति कालविशेषनरूपणामाइ- ___ मूलम्-तिविहा ओसप्पिणी पण्णता, तं जहा-उक्कोसा, मज्झिमा, जहन्ना १ । एवं छप्पि समाओ भाणियव्वाओ जाव दूसमदूसमा । तिविहा उस्तप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा-उक्कोसा मज्झिमा जहन्ना ८ । एवं छप्पि समाओ भाणियवाओ जाव सुसमसुसमा १४॥ सू० १६ ॥ ___ छाया-त्रिविधा अवसर्पिणी प्रज्ञप्ता, तद्यथा-उत्कृष्टा, मध्यमा, जघन्या ९। एवं पडपि समा भणितव्याः, यावत् दुष्पमदुष्पमा ६। त्रिविधा उत्सर्पिणी प्रज्ञप्ता, तद्यथा-उत्कृष्टा, मध्यमा जघन्याच एवं पडपि समा भणितव्या यावत् सुसमसुसमा १४ ॥ सू० १६॥ ___टीका-तिविहा' इत्यादि-चतुर्दशसूत्री सुगमा। नवरम्-अवसर्पिणीप्रथमेऽरके उत्कृष्टा, त्रि चतुःपञ्चमरूपेषु चतुवंरकेपु मध्यमा, चरमेपष्ठेऽरके जघन्या १॥ एवं सुपमसुषमादिषु पट्स्वपि समासु प्रत्येकमुत्कृष्ट-मध्यमजघन्यरूपं त्रयं त्रयं कल्पनीयं यावत्-दुष्पमदुष्पमा ७) तथा-उत्सर्पिण्याः, दुष्पमदुष्पमादितद् संसार से पार जीव कालविशेष में ही होता है अतः अब सूत्रकार कालविशेष की प्ररूपणा करते हैं-(तिविहा ओसप्पिणी पण्णत्ता) इत्यादि। टीकर्थ-अवसर्पिणी तीन प्रकार की कही गई गई है एक उत्कृष्ट अवसपिणी, दसरी मध्यम अवसर्पिणी और तीसरी जघन्य अवसर्पिणी इनमें प्रथम अरक में उत्कृष्ट अवसर्पिणी होती है, द्वितीय, तृतीय और चौथे तथा पांचवें अरक में मध्यम अवसर्पिणी होती है और छठे अरक में जघन्य अवसर्पिणी होती है इसी तरह से सुषमसुषमा आदि छहों कालों में भी प्रत्येक काल में उत्तम, मध्यम और जघन्यरूप तीन २ કાળવિશેષમાં જ છત્ર સંસાર પાર કરે છે. તેથી સૂત્રકાર હવે કાળविशेषनी प्र३५४॥ ४२ छ-" तिविहा ओसपिणी पण्णत्ता " त्याह साथ-मसपिए ३ ४२नी ४डी छ-(1) Srge मपसqिी , (२) मध्यम અવસર્પિણ અને (૩) જઘન્ય અવસર્પિણી પહેલા આરામાં ઉત્કૃષ્ટ અવસર્પિણ હોય છે, બીજા, ત્રીજા, ચેથા અને પાંચમાં આરામાં મધ્યમ અવસર્પિણ હોય છે અને છઠ્ઠા આરામાં જઘન્ય અવસર્પિણી હોય છે. એ જ પ્રમાણે સુષમસુષમા
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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