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________________ सुंधा टीका स्था० २७०४० ५३ भवनप्रत्यादीनां स्थितिनिरूपणम् ५४९ टीका-'असुरिंद० ' इत्यादि । असुरेन्द्रौ-चमरवली, तद्वर्जितानां भवनवासिनां देवानां स्थितिरुत्कर्षतो देशोने-क्रिश्चिन्न्यूने द्वे पल्योपमे क्रिश्चिन्त्यूनपल्योपमद्वय परिमितेत्यर्थः प्रज्ञप्ता ११ ' सोहम्मे ' इत्यादि सूत्रचतुष्टयं सुगमम् । नवरं'साइरेगाइं ' इति सातिरेके-साधिके किञ्चिदधिके इत्यर्थः ५ ॥ सू० ५३ ॥ देवस्थितिप्रस्तावाद द्विस्थानकावतारेण देववक्तव्यतां सप्तसूत्र्या प्राह मूलम्-दोसु कप्पेसु कप्पत्थियाओ पण्णत्ताओ तं जहासोहम्मे चेव ईसाणे चेव १ । दोसु कप्पेसु देवा तेउलेस्सा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मे चेव ईसाणे चेव २ । दोसु कप्पेसु देवा कायपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मे चैव ईसाणे चेव ३ । दोसु कप्पेसु देवा फासपरियारगा पण्णत्ता तं जहा-लणंकुमारे चेव माहिदे चेव ४ । दोसु कप्पेसु देवा रूवपरियारगा पण्णत्ता तं जहा--बंभलोगे चेव लंतगे चेव ५ । दोसु कप्पेसु देवा सदपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा महासुके चेव सहस्सारे चेव ६ । दो इंदा मणपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-पाणए चेव अच्छुए चेव ॥ सू० ५४ ॥ टीकार्थ-असुरेन्द्रों को चमर और बलि को छोड़कर भवनवासी देवों की स्थिति उत्कृष्ट रूप से कुछ कम दो पल्योपम की कही गई है। सौधर्म कल्प में देवों की उत्कृष्टस्थिति दो सागरोपम की कही गई है। ईशान कल्प में देवों की उत्कृष्टस्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम की कही गई है। सनत्कुमार कल्प में देवों की जघन्य स्थिति दो सागरोपस की कही है माहेन्द्रकल्प में देवों की जयस्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम की कही गई है ॥ ५३ ॥ ટીકાર્થ—અસુરેન્દ્રો (ચમર અને બલિ) સિવાયના ભવનવાસી દેવાની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ બે પલ્યોપમ કરતાં થોડી ન્યૂન કહી છે. સૌધર્મ કલ્પના દેવેની ઉત્કૃષ્ટ બે સાગરોપમ કરતાં સહેજ અધિક કહી છે. ઈશાન કલ્પમાં દેવે ની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ બે સાગરોપમની કહી છે સનકુમાર કલપના દેવોની જઘન્ય સ્થિતિ બે સાગરોપમની કહી છે. મહેન્દ્ર કલ્પના દેવેની જઘન્ય સ્થિતિ બે સાગરોપમ કરતાં ડી અધિક કહી છે. એ સૂ ૫૩ છે
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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