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________________ सपा टोका स्था०२ उ०४ सू०४. ज्ञानावरणादि कर्मर्णा वैविध्यनिरूपणम् ५३७ जीवमिति नाम,। उक्तश्च-"जह चित्तयरो निउणो, अणेगरूबाइकुणइ रुवाई । सोहणमसोहणाई, चोक्खमचोक्खेहिं चण्णेहिं ॥ १ ॥ तह नाम पि हु कम्म, अणेगख्वाइं कुणइ जीवस्स । सोहणमसोहणाई, इटाणिहाई लोयस्स ॥ २ ॥" छाया-यथा चित्रकरो निपुणः अनेकरूपाणि करोति रूपाणि । शोभनाशोभनानि, चोक्षाचोवणः ॥ १ ॥ तथा नामापि खलु कर्म, अनेकरूपाणि करोति जीवस्य । शोभनाशोभनानि, इष्टानिष्टानि लोकस्य ॥ ३ ॥ इति । तद् द्विविध-शुभनाम अशुभनाम चेति । शुभनाम-तीर्थकरादि, अशुभनाम__ अनादेयत्वादिद । गर्यते-संशव्यते उच्चावचैः शब्दयत्-तद्गोत्रं, तत्स्वरूपं यथा उस भव के व्यतीत हो जाने पर नियम से छूट ही जाता है । कालान्तर में साथ नहीं जाता है ५,। जो जीव को विचित्र पर्यायों से परिणमाता है वह नामकर्म है। कहा भी है-"जह चित्तथरो निउणो" इत्यादि। जिस प्रकार चित्र बनाने वाला चितेरा अनेक प्रकार के खिलोने लाल पीले आदि रंगों वाले चना देता है उसी प्रकार से यह नाम कर्म भी जीव को अनेक आकारों को बना देताहै लोकको चाहे वे सुन्दर लगे या नहीं लगें, इष्ट हो या इष्ट न हों यह कर्म इसका परवाह नहींकरता है। __यह कर्म शुभनामकर्म और अशुभनामकर्म के भेद से दो प्रकार का है। तीर्थंकर प्रकृति आदि रूप शुभनामकर्म है, और अनादेय आदिતેને સદૂભાવ હોય છે, તે ભવ વ્યતીત થતા તે નિયમથી જ છૂટી જાય છે, કાલાન્ત માં સાથે જતું નથી. . પ . __“जह चित्तयरो निउणो" त्याह જેમ ચિત્ર બનાવનાર ચિત્રકાર અનેક પ્રકારનાં રમકડાંઓને લાલ, પીળાં, આદિ રંગવાળાં બનાવી દે છે, એજ પ્રમાણે આ નામકર્મ પણ જીવને વિવિધ આકારવાળે બનાવી દે છે લોકેને ભલે તે સુંદર લાગે કે ન લાગે, ઈષ્ટ લાગે કે ન લાગે, તેની પરવા તે કરતું નથી. त माना में से छे-(१) शुभ नाम मन (२) अशुभ नामम. તીર્થકર પ્રકૃતિ આદિરૂપ શુભ નામકર્મ છે અને અનાદેય આદિ રૂપ અશુભ
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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