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________________ सुधा टीका स्था०२ 80 ३ सू० ३५ जम्बूद्वीपादीनां घेदिकानिरूपणम् ४५७ तद्देव्योऽप्येवं द्वादशेति । चतुर्दशानां गङ्गादिमहानदीनां पूर्वार्द्धपश्चिमा पेक्षया द्विगुणत्वात्तत्प्रपातहदा अपि द्वौ द्वौ स्युरतएवाह-' दो गंगप्पवायहहा' इत्यारभ्य 'दो रत्तवइप्पवायदहा । इत्यन्तानि पूर्वोक्तद्वात्रिंशत्तमसूत्रोक्तानि चतुर्देश प्रपातहदयुगलानि भवन्ति । 'दो रोहियाओ' इत्यादि, रोहिदादयो रूप्यकूलापर्यन्ता अवस्थद्वात्रिंशत्तमसूत्रोक्ता अष्टौ नद्यो युगलत्वेन सन्ति, तथाहिरोहिता १, हरिकान्ता २, हरित् ३, शीतोदा ४, शीता ५, नारीकान्ता ६, नर. कान्ता ७, रूप्यकूला ८ ।' दो गाहावईयो' इत्यादि, चित्रकूट-पन्नकूट-वक्षस्का. रपर्वतयोरन्तरे नीलवद्वपंधरवपर्व तैकभागव्यवस्थिताद ग्राहवतीकुण्डाइक्षिणतोरण__इन हदों में निवास करनेवाली देवियों की भी संख्या १२ हो जाती है। इसी तरह से गंगा सिन्धु आदि महानदियों के पूर्वार्द्ध और पश्चिमाध की अपेक्षा द्विगुण होने से प्रपातहूद भी दो दो हैं। इसीलिये “दो गंगप्पवायदहा से लेकर "दो रत्तवइप्पवायदहा" तक के ३२वें सूत्र में १४ प्रपातहद युगल प्रकट किये गये हैं । " दो रोहियाओ" इत्यादि रोहिता से रूप्यकूला तक नदियों के दो दो युगल हैं। "दो गाहावईओ" इत्यादि दो ग्राहवती नदियां हैं । ये नदियां चित्रकूट और पद्मकूट नामके दो वक्षस्कार पर्वतों के अन्तर में नीलवर्षधर पर्वत के एकभाग में व्यवस्थित ग्राहवतीकुण्ड से दक्षिणतोरण से विनिर्गत है इनकी परिवार नदियां २८-२८ हजार हैं। ये दोनों ग्राहयती नदियां सीतानदी में जाकर मिली हैं। सुकच्छ और महाकच्छ नामक दो विजयों का इनसे તે હદેમાં નિવાસ કરનારી દેવીઓની સંખ્યા પણ ૧૨ ની છે. એ જ પ્રમાણે ગંગા, સિધુ આદિ નદીઓની સંખ્યા પણ પૂર્વાદ્ધ અને પશ્ચિમાધની अपेक्षा भी थती पाथी अपाता पY ५२ . तेथी " दो गगप्पवाह दहा" थाने “दो रत्तवइप्पवायदहा" यन्तना ३२ मां सूत्रमा १४ પ્રપાતહિંદ યુગલે પ્રકટ કરવામાં આવ્યા છે. "दो रोहियाओ" त्या हिताथी साधन रुप्यता ५-तना नही. साना मध्ये सुर छ. “ दो गाहावई ओ" त्यादि. मे प्रावती नदीमा છે. તે નદીઓ ચિત્રકૂટ અને પદ્મટ નામના બે વક્ષસ્કાર પર્વતની વચ્ચે નીલવત્ વર્ષધર પર્વતના એક ભાગમાં આવેલા ગ્રાહવતીકુંડના દક્ષિણ તેરણમાંથી નીકળે છે, તેમની પરિવાર નદીએ ૨૮–૨૮ છે. તે બને છાવતી નદીઓ સીતા નદીને મળે છે. સુકચ્છ અને મહાક૭ નામના બે વિજયેનું था ५८
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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