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________________ सुधा टीका स्था०२ 30 ३ सू० ३४ कालव्य ज्योतिष्काणांनिरूपणम् ४३३ पूर्व जम्बूद्वीपे काललक्षणद्रव्यपर्यायविशेपा उक्ता, साम्प्रतं तत्रैव कालपदाथव्यञ्जकानां ज्योतिष्काणां द्विस्थानानुपातेन परूपणासाह मूलम्-जंबुद्दीवे दीवे दो चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिरसंति वा, दोसूरिया तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति वा। दो कत्तियाओ, दो रोहणिओ, दो मिगसिराओ, दो अदाओ एवं भाणियव्वं जाव दो भरणीओ। . " कत्ति ये रोहिणि मगसिर, अद्दी य पुणव्वसूं य पूसो य। तत्तो वि अस्सलेसा, महा य दो फागुणीओ य॥ १ ॥ हत्थो चित्ता साई, विसौहा तह य होइ अणुराहा ।। जेठा मूंलो धुव्वा य असाही उत्तरा चेव ॥ २ ॥ अभिई सर्वेण धणिट्री, सयभिनयाँ दो य होति भयो । रेवेइ अस्सिँणि भरणी, णेयव्वा आणुपुवीए ॥ ३॥” । एवं गाहाणुसारेणं णेयध्वं । ___ दो अग्गी, दो पयावई, दो सोमा, दो रुंदा, दो अदिई, दो बहस्सई, दो सप्पा, दो पियरी, दो भगा, दो अज्जमा, दो सविया, दो तट्ठा, दो वाऊँ, दो इंदैग्गी, दो मित्ता, दो इंदा, तिरसठ शलाका के पुरुष उत्पन्न होते हैं अवसर्पिणी के चतुर्थकाल दुष्षमसुषमा में और किसी काल में अन्य क्षेत्रों में नहीं होते हैं तथा भरतक्षेत्र और ऐरवत क्षेत्र में भी अन्यकाल में नहीं होते हैं-विदेहक्षेत्र में निषेध नहीं है। इस सब विषय को हृदय में धारण करके यह सूत्र गम्य है। सू०३३॥ થાય છે. તેઓ ત્યાં અવસર્પિણીના ચેથા કાળમાં (દુષમ સુષમામાં) જ ઉત્પન્ન થાય છે, બીજાં કઈ પણ કાળમાં ઉત્પન્ન થતા નથી અને અન્ય ક્ષેત્રોમાં પણ ઉત્પન્ન થતા નથી. ભારત અને એરવત ક્ષેત્રમાં પણ તેઓ અન્ય કોઈ પણ કાળમાં ઉત્પન્ન થતા નથી. વિદેહ ક્ષેત્રમાં નિષેધ નથી. આ સમસ્ત વિષયને હદયમાં ઉતારવામાં આવે તે આ સૂત્રને ભાવ સરળ થઈ જાય છે. આ સૂ. ૩૩ था ५५
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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