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________________ स्थान सूत्रे पर्यायाधिकारादेव नियतक्षेत्राश्रितत्वेन क्षेत्रव्यपदेश्यान् पुद्गलपर्यायान प्रतिपिपादयिषुः क्षेत्रमकरणमाह मूलम् — जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्त उत्तरदाहिणेणं दो वासा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नं नाइवहंति आयामविक्खंभुच्चतोव्वहसंठाणपरिणाहणं तं जहा I भरहे चेव एखए चेव । एवं एएणं अभिलावेणं हे चैत्र, हेरन्नव चेव, हरिवासे चेत्र रम्मयवासे चेव । जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स व्यस्त पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं दो खित्ता पण्णत्ता बहुसमतुल्ला अविसेस० जाव - तं जहां पुत्रविदेहे व अवरविदेहे चेव । जंबूमंदरस्स पवयस्त उत्तरदाहिणेणं दो कुराओ पण्णत्ताओ बहुसमतुल्लाओ जाव तं जहा - देवकुरा चेव उत्तरकुरा चैव तत्थ णं दो महइमहालया महादुगा पण्णत्ता बहुस मतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नं णाइवद्वंति आयामविवखंभुच्चत्तोवेहसंठाणपरिणाहेणं, तं जहा - कूडसामली चेत्र जंबू चेव सुदंसणा । तत्थ णं दो देवा महिड्डिया जाव महासोक्खा पलिओत्रमट्टिया परिवसंति, तं जहा - गरुले चेत्र वेणुदेवे अणाढिए चैव जंबुद्दीवाहिवई ॥ सू० ३० ॥ ૨૮ का जो उपक्रम है वह आयुष्क संवर्त्तक है - यह सोपक्रमायुरूप आयुष्क संवतक मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यश्चों को होता है क्योंकि ये सोपक्रम आयुवाले भी होते हैं। २४ ।। सू० २९ ।। पर्यायाधिकार को लेकर ही अब सूत्रकार नियक्षेत्राश्रित होने के कारण क्षेत्र व्यपदेश्य पुद्गल पर्यायों को प्रतिपादन करने की इच्छा से સવક છે. તે સેપકમાયુરૂપ આયુષ્ય સવક મનુષ્ય અને પચેન્દ્રિય તિયચામાં હાઈ શકે છે, કારણ કે તેએ સેપક્રમ આયુવાળા પણ હાય છે. ।। ૨૪ ॥ ॥ સુ ૨૯ !! પર્યાયાધિકાર ચાલી રહ્યો છે, હવે સૂત્રકાર-નિયત ક્ષેત્રાશ્રિત હાવાને કારણે - ક્ષેત્રપદેશ્ય પુદ્દલ પર્યાયનું પ્રતિપાદન કરવાના હેતુથી ક્ષેત્ર -
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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