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________________ .३०८ ___ स्थानागसूत्रे याप्रथमसमयमाश्रित्य, सूत्रं वोध्यम् । ' अहवे' त्यादि-अथवा-प्रकारान्तरेण चरमसमयाचरमसमयमाश्रित्यापि सूत्रं वाच्यम् । 'अजोगी'-त्यादि-एवम्-अयोगिकेवलिक्षीणपायवीतरागसंयमोऽपि प्रथमाप्रथमसमयमाश्रित्य, अथवेति प्रकारान्तरेण चरमाचरमसमगमाश्रित्य च सूत्रद्वयं वोध्यम् ।। सू० १६ ॥ संयमो वर्णितः। स च जीवाजीवविषय इति पृथिव्यादिजीवस्वरूपं वर्णयति मूलम्-दुविहा पुढविकाइया पन्नत्ता, तं जहा - सुहमा चेव, बायराचेव१। एवं जाव दुविहा वणस्सइकाइया पन्नत्ता,तं जहा-मुहमाचेवानायराचेव५। दुविहा पुढविक्काइया पन्नत्ता, तं जहा--पज्जत्तगा चेव अपज्जत्तगा चेव६ । एवं जाव वणस्सइकाइया १० । दुविहा पुढविकाइया पन्नत्ता, तं जहापरिणया चेव अपरिणया चेव११ । एवं जाव वणस्सइकाइया १५। दुविहा दवा पण्णत्ता, तं जहा-परिणया चेव, अपरिणया चेव १६ । दुविहा पुढविकाइया पण्णत्ता, तं जहागइसमावन्नगा चेव, अगइलमावन्नगा चेव १७। एवं जाव वणस्सइकाइया २१ । दुविहा दवा पण्णत्ता, तं जहागइसमावन्नगा चेव, अगइसमावन्नगा चेव २२। दुविहा नहीं रहता है संयोगि केबलि क्षीणकषाय वीतराग संयम प्रथम समय और अप्रथम समय की प्रतिपत्ति की अपेक्षा लेकर तथा चरम समय और अचरम समयकी अपेक्षा ले कर दो प्रकार का कहा है इसी प्रकार से अयोगि केवलि क्षीणकषाय वीतराग संयम भी प्रथम समय और अप्रथम समयकी प्रतिपत्ति की अपेक्षा लेकर के तथा चरम समय और अचरम समय की अपेक्षा ले करके दो प्रकारका कहा गया है । सू०१६॥ થમ સમયની પ્રતિપત્તિની અપેક્ષાએ તથા ચરમ સમય અને અચરમ સમયની પ્રતિપત્તિની અપેક્ષાએ બે પ્રકારને કહ્યું છે. એ જ પ્રમાણે અાગી કેવલિ ક્ષીણ કષાય વીતુરાગ સંયમ પણ પ્રથમ સમય અને અપ્રથમ સમયની પ્રતિપત્તિની અપેક્ષાએ તથા ચરમ સમય અને અચરમ સમયની અપેક્ષાએ मे प्रा२ने। वो छ. ॥ सू० १६ ॥
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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