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________________ - % 3D स्थानागसूत्र ( वसन्ततिलकावृत्तम् ) आनन्तरागमसुधारसनिझरेण, संसिच्य धर्मतरुसमुचिमालवालम् । स्वर्गापवर्ग सुखराशिफलं प्रदाय, मोक्ष गतं तमिह गौतममानमामि ॥ २॥ शब्दार्थ-(आनन्तरागमसुधारसनिझरेण ) अनन्तरागम-अर्थात् आगम तीन प्रकारका होता है-आत्मागम अनन्तरागम और परम्परागम तीर्थकगेका आत्मागम है गणधरों का अनन्तरोगम है और अन्य के लिये परम्परागम है । आनन्तरागमरूपी सुधारस के प्रवाह से (धर्मरूप वृक्ष के सम्यग्दर्शनरूप आलचाल-क्यारी को (संसिच्य) सींचकर जिन्हों ने (स्वर्गापवर्गसुखराशिफलं प्रदाय) भव्यजनों के लिये उसके फलस्वरूप स्वर्ग एवं भोक्ष के सुखरूप फलों को वितरित कर उन्हें कल्याणस्थानमें पहुंचाया ऐसे (मोक्षं गतं तं गौतमम् अहम् इह नमामि) मोक्ष प्राप्त उन गौतमस्वामीको मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूं। श्लोकार्थ-इस श्लोक में प्रभु के मोक्ष चले जाने के बाद गौतम ने क्या किया इस बात को स्पष्टरूप से प्रकट किया गया है-प्रभु ने जिस धर्मरूपी वृक्ष को लगाया था- उस की क्यारीरूप सम्यग्दर्शन को उन्हों ने प्रभु से प्राप्त उपदेशद्वारा ही सिंचित किया और उस धर्म के फलरूप स्वर्गमोक्ष के सुखों को अन्यजीवों के लिये वितरित किया-इस ____wall-(आनन्तरागमसुधारस निर्झरेण ) महावीर प्रभु माझे सीधाव्या मा भागभ३५ सुधारसना प्रपा थी (धर्मतरुसद्रुचिरालवालम् ) धर्म३५ वृक्षनरी सभ्यशन३५ पासवानु (यारीनु ) ( ससिच्य ) सिंथन ४शने, ( स्वर्गापवर्ग सुखराशिफल प्रदाय) मध्य नमाने भाट तेना ५८ २१३५ सामने મોક્ષના સુખરૂપ ફળોનું વિતરણ કરીને તેમણે કલ્યાણ સ્થાનમાં પહોંચાડનાર ( मोक्ष गतं तं गौतमम् अहम् इह नमामि) मने भाक्षनी प्राति ४२नार मेai ગૌતમસ્વામીને હું ભક્તિભાવ પૂર્વક નમસ્કાર કરું છું પ્લેકાર્થ–મહાવીર પ્રભુ નિર્વાણ પામ્યા પછી ગૌતમ સ્વામીએ શું કર્યું તે આ શ્લેકમાં સ્પષ્ટરૂપે પ્રકટ કર્યું છે–સૂત્રકાર કહે છે કે મહાવીર પ્રભુએ જે ધર્મરૂપી વૃક્ષને રેપ્યું હતું તેની કયારી રૂપ સમ્યગદર્શનને તેમણે (ગૌતમે). તેમની પાસેથી મેળવેલા ઉપદેશ દ્વારા જ સિચિત કર્યું, અને તેમણે તે ધર્મના ફલરૂપ સ્વર્ગ અને મોક્ષનાં સુખોનું ભવ્ય જેને માટે વિતરણ કર્યું. આ રીતે મહાવીર પ્રભુએ બતાવેલા માર્ગે તેઓ પોતે ચાલ્યા અને
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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