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________________ .३२६ सुकृतासूत्रे न्वि, 'एस ठाणे आवरिए' इदं स्थानमार्यम् - प्रार्यपुरुपैः समाचरितम् 'जाव एगंत सम्मे साहू' यावद एकान्तमम्यक साधु, अत्र यावत्पदेन - केवलं परिपूर्ण सुशुद्धं सिद्धिमागे मोक्षमार्ग निर्माणमार्ग सर्वदुःखमहीणमार्गम्, एकान्तता समीचीनं न तु कदाचित् साधु - कदचिदसाधु इत्येवं रूपेण संदिग्धम् 'तश्चस्स ठाणस्स पिस्स गस विमंगे एवं आदिए' तृतीयस्य स्थानस्य मिश्रकस्य मित्रकाऽपरनाम्न एवं विभङ्गः - विचार आख्यातो भवति 'अचिरई पड़च्च वाले आहिजई' अविरति मतीत्य बाळ आख्यायते ' चिरई पच पंडिए आहिज्ज ई' विरर्ति मतीत्य पण्डित इत्याख्यायते, अपमापः- मिश्र थानाधिकारी अविरत्यपेक्षया वाल इति कथ्यते, विरत्यपेक्षया च पण्डित इति भण्यते, उभयाऽपेक्षया वालपण्डित इति भण्यवे 'विरावर पडुच्च बालां डेए आहिज्जई' विरत्यविरती प्रतीत्य चाळपण्डित - यह मिस्थान आर्य पुरुषों द्वारा आचरित है यावत् एकान्त सम्पक् है अच्छा है। यहां 'यावत्' पद से इन विशेषणों को समझ लेना चाहिए- केवल, परिपूर्ण, संशुद्ध, सिद्विमार्ग, मोक्षमार्ग, निर्याणमार्ग, निर्वाणमार्ग, समस्त दुःखों के विनाश का मार्ग । इनकी व्याख्या पूर्ववत् समझ लेनी चाहिए । तृीय स्थान मिश्र पक्ष का विचार इस प्रकार कहा गया है। इस स्थान में आंशिक ( देश से ) अविरति और आंशिक (देश से) विरति कही गई है। अतः इस स्थान वाले अविरति की अपेक्षा से बाल और विकी अपेक्षा से पण्डिन करलाते हैं। दोनों की अपेक्षा से उन्हें' 'बाल - पण्डित' कहते हैं । આ મિશ્રસ્થાન આય પુરૂષા દ્વારા આચરેલ હાય છે. યાવત્ એકાન્ત સમ્યક્ છે. સુંદર છે. અહિયાં યાવત્ શબ્દથી આ વિશેષશે સમજી લેવા. त्रण, परिपूर्व, संशुद्ध, सिद्धि मार्ग, मोक्ष भार्ग, निर्याणु भार्ग, निर्वास મા, સઘળા દુઃખાના વિનાશના માર્ગ આ બધા પદ્માની વ્યાખ્યા પહેલાં કહેવામાં આવી ગયેલ છે, તે પ્રમાણે સમજી લેવી જોઇએ ત્રીજા સ્થાન મિશ્ર પક્ષના વિચાર આ પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે. आ स्थानमां मांशिक (देशी) अविरत भने मशि (देशयी) विरत છે. તેથી આ સ્થાનવાળા અવિરતિની અપેક્ષાથી ખાળ અને વિરતિની અપે ક્ષાથી પડિત કહેવાય છે. ખન્નેની અપેક્ષાથી તેઓને ખાલપતિ કહે છે.
SR No.009306
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages791
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size45 MB
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