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________________ ५१८ Lies Way LEONIAL HERNste | मुरजां सह अमाह वा वं सन्नं णिवेस अस्थिसा असावा, एवं सन्नं पिवेसें ॥२७॥ पूर्ण नैव मयां निवेशयेत | एवं संज्ञां निवेशयेत् ॥२७॥ मधुर - (न्) नास्ति न विद्यते (माह) साधुः (असावा) असा. नामदन) एवम्-ई-बुद्धिन निवेशयेन गया है। जो जीव कर्मों के अधीन है वे अनेक स्थानों का के अनुसार अनुभव करते हैं, किन्तु निष्कर्म जीव का प्रभाव ही है ॥२॥ अपने स्थान तो 'गन्धिना अमहवा' इत्यादि । शान्ति साह नास्ति साधुः न कोई साधु है, 'बा अमाह-या असाधुः' अपया न कोई असाधु है 'वंसनं निवेसएनये मंत्र निवेशयेत्' प्रकार की बुद्धि धारण करनी उचित नहीं है, अर्थात संपूर्ण चरित्र गुण का अभाव होने से कोई माधु नहीं है और जयपोर्ट साधु ही नहीं है, तो उसके प्रतिपक्ष असाधु की भी मता नही मला भ्रम पूर्ण है किन्तु 'अन्थि साह असाह वा अलि माधुरसाधु af' माधु है और अमाधु भी है एवं मन्नं निवे. सएसन निवेशयेत्' मी ही समझ धारण करनी चाहिए ||२७|| अत्यार्थ--न कोई साधु है, न असाधु है, इस प्रकार की बुद्धि સ્વ ન મ છે. તે કેટવામાં આવ્યુ છે. જે જીવ કનિ नेताना महिय प्रमाणे अनुभव रे अभा ॥२६॥ पनि K efa mg eng q Saule लतिया सूत्रो ओस मे नथी. अर्थात भू शास्त्रि નથી, અને જ્યારે ઈ સાધૂ જ નથી एनभी क्षेत्र समय अगभूता qeshin migeriqat yi, wa wag +4 अभ जन्मनिष् * 1 'माधु नभी, 'या समारनियम शांनिवेश ૧૬૧ થતા wenye pavi. C २००९५ ६-१६ ४०० नेम है या नथी भाषा प्रश "" * प्रभ
SR No.009306
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages791
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size45 MB
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