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________________ बोधिनी टीका द्वि. . अ. ६ आर्द्रकमुने गौशालकस्य संवादनि० ५८३ (इत्यियाओ ) स्त्रियः - स्त्री : ( एवाई) एतानि (पडि सेवमाणा) प्रतिसेवमानाः - एतेषां सेवनकर्ता र स्वपःकारिणोऽकारिणो वा अवन्तु किन्तु एते (बगारिणो) अगारिणो गृहस्था एव । (अस्समणा) अभ्रमण :- न श्रवणाः नैते साधवो भवन्तीति (जाण) जानीहि - हे गोशालक । इत्यार्द्रकः कथयति ||८|| टीका-सुगमा ||८| मूलम् - सिया य बीयोदेगइत्थियाओ, पडिलेवैमाणा सा भवतु । अंगारिणो वि मणाँ भवंतु, 99 'सेवंति उ ते विहप्पारं ॥९॥ छाया -- स्याच्च वीजोदकस्त्रियः प्रतिसेवमानाः श्रमणा भवन्तु । - गारोऽपि श्रमणा भवन्तु सेवन्ते तु तेऽपि तथामकारम् |९|| बीजों वाली वनस्पति का, आधाकर्मिक आहार का और स्त्रियों का सेवन करते हैं, वे चाहे तप करते हों या न करते हों, किन्तु गृहस्थ ही हैं । वे श्रमण नहीं हो सकते । इस बात को समझ लो यह गोशालक के प्रति आर्द्रक का कथन है ||८|| टीका सरल है ॥८॥ 'सियाय वीयोदगइत्थियाओ' इत्यादि । शब्दार्थ - फिर से आर्द्रक मुनि कहते हैं-बीज आदिका सेवन करने वालों की साधुता का निषेध करके अब उस मतमें बाधक युक्ति दिखलाते हैं- 'सियाय स्वाच्च कदाचित् 'बीयोद्गइत्थियाओ-बीजोदकस्त्रियः' सचित्त बीज सचित्त जल और स्त्रियों का 'पडि सेवमाणा-प्रतिसेवमाना" વનસ્પતિનુ આધામિ આહારનું અને સ્ત્રિયાનુ સેવન કરે છે તે તપ કરતા હાય અથવા ન કરતા હોય પરંતુ તએ ગૃહસ્થ જ છે. તેએ શ્રમણુ થઈ શકતા નથી. એ વાત સમજી લે। આ પ્રમાણે ગેશાલકને આ કમુનિએ કહ્યુ. ટા આ ગાથાના ટીકા સરળ છે. 'सीया य बीओदगइत्थियाओ' इत्याहि શબ્દા—કીથી આક મુનિ ખીજ વિગેરંતુ સેવન કરવાવાળાએના साधुपाना निषेध मरीने हुवे ते भतनी जाध युक्ति मतावे हे 'सियाय - 'स्याच्च' ४४ २२ 'बीयोदग इत्थियाओ - बीजोदक स्त्रिय. ' सत्ति भी सत्तियाथी, मने स्त्रियानु' 'पड़िसेवमाणा - प्रतिसेवमानाः ' सेवन ठरवावाजा 'समणा
SR No.009306
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages791
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size45 MB
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