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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५१३ अत्येति, अतिक्रामति - न तत्र प्रतिहतो भवतीत्यर्थः न तासां वशवर्त्ती भवतीति यावत् । रागद्वेषादिविमूढो हि रुयादावनुपज्जति, यस्य तु स्त्र्यादि स्त्ररूपज्ञानेन तत्मसंगजनितफलाऽफल विनिर्णयाभ्यासे वैराग्यं भवेत् तस्य ततोनिवृत्तिभवति आश्रवाऽभावात् ॥ ८ ॥ मूलम् --इंस्थिओ जेणं सेवंति आइमोक्खा हुं 'ते जणा । 'ते जणा बंधणुम्मुक्का नावकखति जीवियं ॥ ९ ॥ छाया -- स्त्रियो ये न सेवन्ते आदिमोक्षा हि ते जनाः । जना बन्धनमुक्तानाऽत्रकांक्षन्ति जीवितम् ॥९॥ को रोकने में समर्थ नहीं होते । वह स्त्रियों के वशीभूत नहीं होता । जो राग द्वेष से विमूढ वना रहता है वही स्त्री आदि में आसक्त होता | जिसने उनके स्वरूप को समझ लिया है और उनके प्रसंग से होने वाले दुष्फल का निर्णय कर के वैराग्य प्राप्त कर लिया है, वह उनसे निवृत्त हो जाता है । वह आश्रव से रहित हो जाता है ||८|| 'इथिओ जेण सेवंति' इत्यादि । शब्दार्थ - 'जे-य:' जो महापुरुष 'इत्थिओ - स्त्रियः' स्त्रियों का 'ण सेवंति - न सेवन्ते' सेवन नहीं करता है, 'ते-ते' वे 'जणा - जना: ' पुरुष 'बंधणु मुक्का-पन्धनोन्मुक्ताः' सकलबन्ध से रहित होकर के 'जीवियं-जीवितम् ' असंयम' जीवन की 'णावकखति-नावकाङ्क्षन्ति' इच्छानहीं करते है कारणकि 'ते-ते' वे महापुरुष 'हु' निश्चय से 'आमोक्खा - आदिमोक्षाः सर्व प्रथम मोक्षगामी होते हैं ॥९॥ થઈ શકતા નથી. તે અિયેાને વશ થતા નથી. જેએા રાગદ્વેષથી વિમૂઢ ખની રહે છે, એજ સ્ત્રી વગેરેમાં આસક્ત થાય છે. જેણે તેએાના સ્વરૂપને સમજી લીધુ' છે, અને તેમના પ્રસંગથી થવાવાળા દુષ્ફળ-ખરાબ પરિણામના નિષ્ણુય કરીને વૈરાગ્ય પ્રાપ્ત કરી લીધા છે, તે તેનથી નિવૃત્ત થઈ જાય છે. તે આસ્રવથી રહિત થઈ જાય છે. ડાટા 'इथिओ जेण सेवंति' इत्याहि शब्दार्थ' – 'जे - य.' ने महापु३ष 'इथिओ - स्त्रिय.' खियेोनुं 'ण सेवंति - न सेवन्ते' सेवता नथी 'ते - ते' मे 'जणा-जना' पु३षेो वधणुम्मुक्का - बन्धनोम्मुक्ताः' समस्त धनोथी रहित थाने 'जीवियं- जीवितम्' असंयम अपनी 'नावकखंति - नावकाङ्क्षन्ति' ४२छा उस्ती नथी, अश्शु है 'ते ते' से महापुरषो 'हु' निश्चयथी 'आइमोक्खा - आदिमोक्षाः' सर्व प्रथम भोक्षणाभी थाय छे. या स० ६५
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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