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________________ समयार्थचोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २७३ 'अणुहू यदिवचिंतिय सुरपय वियारदेश्याया। सुमिणस्स णिमिचाई, पुण्ण पावंच णाभावो ॥१॥ छाया-अनुभूतष्टचिन्तित श्रुतप्रकृतिविकारदेवतानृपाः । स्वप्नस्य निमित्तानि पुण्यं पापं च नाभावः ॥१॥ अपिच-सर्वशुन्यत्वे गुरु स्ति, नास्ति च शिष्यः, न वा विद्यते उपदेष्टव्यं वस्तु, इसिमर्थ सर्वशून्योपदेशोऽपि बुद्धरय घटेत । तदेवं विद्यमानमेव पदार्थ ज्ञानावरणीयादि कसै मतिरुद्धमज्ञा अक्रियावादिनो न पश्यन्ति । यथाऽन्धः पुरुषः यदीपहस्तः सन्तमपि घटादिपदार्थसाथै न पश्यति, तथा-प्रज्ञारहिता अक्रियाजागृत अवस्था में देखे, सुने या अनुभव किये हुए पदार्थ ही स्वप्न में प्रतीत होते हैं । कहा ली है-'अणुहूप्रविचिंतिय' इत्यादि ।। ___ 'अनुभूत, दृष्ट, मन से चिन्तित, कानों से सुने हुए पदार्थ, प्रकृति विकार अर्थात् वात, पित्त, कफ की विषमता, देवता, पुण्य और पाप ये स्वप्न के कारण होते हैं । अमाव स्वप्न का कारण नहीं होता। इसके अतिरिक्त शून्यवाद के अनुसार न गुरु की सत्ता है, न शिष्य की, उपदेश करने योग्य कोई वस्तु भी नहीं है। ऐसी स्थिति में बुद्ध का सर्वशून्यना का उपदेश भी कैसे संगत हो सकता हैं ? इस प्रकार विद्यमान पदार्थों को भी ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से आच्छा. दित प्रज्ञाशले थे अक्रियावादी नहीं देख पाते हैं। __आशय यह है कि जैसे जन्मान्ध पुरुप विद्यमान भी घट आदि पदार्थों को नहीं देखता, उसी प्रकार ज्ञानहीन ये अक्रियावादी भी ४२वामा मासा पदार्थात वनमा प्रत्यक्ष थाय छे. ४थु ५५ छ ?-'अणु. हूयदिद्वचिंतिय' त्यात मनुल ४२सा, येसा, मनथी पियारेसा, नाथी सालणे पहा પ્રકૃતિ વિકાર અર્થાત્ વાત, પિત્ત, કફનું વિષમ પણ દેવતા, પુણ્ય, અને પાપ આ બધા સ્વપ્નના કારણ રૂપ હોય છે અભાવ સ્વપ્નનું કારણ હોતું નથી. આ શિવાય શૂન્ય વાદ પ્રમાણે ગુરૂની સત્તા નથી, તેમ શિષ્યની સત્તા પણ નથી. તથા ઉપદેશ આપવાને ચગ્ય કઈ વસ્તુ પણ નથી. આવી સ્થિતિમાં બુદ્ધને સર્વ શૂન્યને ઉપદેશ પણ કેવી રીતે સંગત થઈ શકે ? આ રીતે વિદ્યમાન પદાર્થોને પણ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના ઉદયથી ઢંકાયેલી બુદ્ધિવાળા આ અકિયાવાદિયે જોઈ શકતા નથી. કહેવાનો આશય એ છે કે–જેમ જન્માંધ પુરૂષ વિદ્યમાન ઘટ વિગેરે પદાર્થોને જોઈ શકતા નથી. એ જ પ્રમાણે જ્ઞાનથી રહિત આ અકિયાવાદિ सू० ३५
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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