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________________ सूत्रहंतागो खननकार्यप्रवृत्तः कश्चित्साधु पृच्छेत् अत्र पुण्यमस्ति अपुण्यवेति । तत्र साधुः पुण्यमस्तीति न वदेव, नाऽपि नास्ति पुण्य मित्येवं या बदेव, यतो हि-उभयधाऽपि विधेनिषेधस्य वा कथनं महतो भयस्य कारणमिति सारः ॥१७॥ तादृशं कूपखननादिकार्य किमिति साधु नुमन्येत, तत्राह मूत्रकार:मूलम्-दाणहया य जे पाणा, हेल्मति तसथावरा । तेसिं सारकखणटाए तम्हा अस्थीति णो वए ॥१८॥ छाया-दानार्थाय च ये पाणाः, हन्यन्ते त्रसस्थावराः । तेपां संरक्षणार्थाय, तस्मादस्तीति नो वदेव ॥१८॥ किये जाने वाले दोपों के कारणभूत लामच कर्म के अनुष्ठान का अनु मोदन न करे। सार यह है कि कूप आदि खोदने में प्रवृत्त कोई पुरुष साधु से प्रश्न करे-इस कार्य में पुण्य है या पाप है ? तो लाधु 'पुण्य है ऐसा भी न कहे और 'पाप है' ऐसा भी न कहे। क्योंकि विधान करना और निषेध करना, दोनों ही सहान् भय के कारण है ॥१७॥ 'दाणहया' इत्यादि। शब्दार्थे --'दाणा -दालार्थाय' अन्नदान अथवा जलदान देने के लिये 'जे तलथावरा पाणा मंति-रे असल्यावराः प्राणा: हन्यन्ते' जो अस और स्थावर प्राणी मारे जाते हैं 'तेसिं सारखणवाए-तेषां संरक्षणार्थाय उन जीवों की रक्षा करने के लिये 'अल्थीति नो वए-अस्ति इति नो यदेत्' पुण्य होता है ऐसा न कहे ॥१८॥ આ રીતે બન્ને પ્રકારથી અહાન્ ભય સમજીને બીજાના દ્વારા કરવામાં આવનારા દેના કારણભૂત સાવધ કર્મના અનુષ્ઠાનતુ અનુમોદન ન કરે ! કહેવાને સાર એ છે કે–ફ વિગેરે દવામાં પ્રવૃત્ત થયેલ કેઈ પુરુષ સાધુને પૂછે કે–આ કાર્યમાં પૂણ્ય છે કે પાપ છે? તે સાધુએ “પુણ્ય छ तभ ५५ यु नही. मने 'पा५ छे, तेम ५५ पु नडी, भ, વિધાન કરવું અને નિષેધ કરે એ બન્ને મહાન જ્યના કારણરૂપ છે. ૧૭ 'दाणट्ठया' इत्यादि शहाथ-'दाणट्टया-दानार्थाय' महान अथवा हान २५१! भाट 'जे तसथावरा पाणा हम्मंति-ये त्रसस्थावरा. प्राणाः इन्यन्ते' २ स स्थावर प्रायो भा२पामा मावे छे. 'सि' सारखणद्वाए-वेषां सरक्षणार्थाय' से छवानी रक्षा ४२११ भाटे 'अत्यति नो वए-अस्ति इति नो वत्' पुस्य थाय છે તેમ ન કહેવું. ૧૮
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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