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________________ ___ सूत्रकृतासूत्र वाळवीय पण्डितवीर्य चेति। प्रमादवतः सकर्मणो वीर्य वालबीर्य प्रमादरहितस्य कर्माऽभाववतो वीर्य पण्डितवीर्यमिति विवेकः । 'दमावादेसओ वावि' तद्भावा. देशतो वापि, तयो बालवीर्यपण्डितवीर्ययोः भावः-सत्ता तद्भाव स्तेन तद्भावेन घालः पण्डित इति व्यवहारो भवति' बालवीर्यमभव्यानामनाथपर्यवसितम्, - भव्यानामनादिसपर्यवसितम्, पण्डितवीर्यन्तु सादिसपर्यत्रसितमिति । तीर्थंकरा: समादं कर्म-इति कथितवन्तः तथा-अप्रमादमकर्म, इत्युक्तवन्तः । अतः प्रमादेन पालवीय भवति, भवतिचाऽप्रमादेन पण्डितबीयमिति निष्कर्षः ॥३॥ तत्र प्रमादवतः सकर्मणो जीवस्य यद्वीय तद्वालवीर्यमिति तदेव दर्शयति त्रकार:-'सत्यमेगे तु' इत्यादि । मूलम् संस्थ मेगे तु सिक्खंता अतिवायाय पाणिणं । - एंगे मते अहिजंती पाणभूय विहेडिणो ॥४॥ कि प्रमत्त और सकर्मा जीव का बालवीर्य तथा अपमन्त और अकर्मा जीव का पण्डितवीर्य है। वीर्य के साथ 'बाल' था 'पण्डित' जो विशेषण लगाया गया है, वह प्रमाद और अप्रमाद के कारण ही है । अभन्य जीवों का बाली अनादि अनन्त है, अन्य जीवों का अनादिसान्त है अर्थात् वह सदाशाल से चला आता है किन्तु कभी उसका अन्त आजाता है। पण्डित बीर्य सादि-शान्त ही होता है। निष्कर्ष यह है कि तीर्थकर भगवन्तों ने प्रमाद को कर्म और अप्रमाद को अकर्म कहा है । अतएव प्रमाद के कारण बालवीर्य और अप्रमाद के कारण पण्डित बीर्य होता है ॥३॥ . 17 અને કર્મ વાળા જીવનું બલવીર્ય અને અપ્રમત્ત અને અકર્મા–કર્મ વિનાના नु पडित' पीय छे वीय नी साथे 'वाल' पथ पडित' से विशेष લગાડવામાં આવે છે. તે પ્રમાદ અને અપ્રમાદના કારણથી જ હોય છે. - सव्य वातु पालवीय मनाहि मन मन छे. भव्य वानु અનાદિ સાન્ત છે. અર્થાત્ તે સદા કાળથી ચાલ્યું આવે છે, પરંતુ કેઈ વખત તેને અન્ય આવી જાય છે, પંડિતવીર્ય સાદિ-સાત જ હોય છે, આનો સાર એ છે કે-તીર્થકર ભગવંતે એ પ્રમાદ ને કર્મ અને અપ્રમાદ ને અકર્મ કહેલ છે. તે જ પ્રમાદના કારણે બલવીર્ય અને અપ્રાદના કારણે पाडतवीर्य डाय छे. ॥३॥ . . . . .
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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