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सूचकृतास्त्रे मूलम्-
तिर्खाहिं सूलाहिं निवाययंति, बसोग सावययं व लहे। • ते सूलविदा केलणं थैलि, एगते दुक्खाबुहंओ गिलाणा॥१०॥ छाया-वीक्ष्णामिः शूलामिनिपातयन्ति बशंग श्वापदमिक लब्धम् ।
ते शूलविद्धाः करुण स्तनन्ति एकान्तदुःखं विधातो ग्लानाः ॥१०॥ अन्वयार्थ:---(वसोगय) वसंगत-स्वायत्तीकृतं (साक्यवं च) श्वापदमिव वन्यपशुमिव (लई) लब्धं प्राप्तं नारकजीयम् परमाधारिकाः (तिक्वाहि मूलाहि) कि मरणासन्न होकर भी और अत्यन्त पीस देने पर भी वे भरते नहीं हैं, बल्कि पारे के समान फिर मिल जाते हैं ॥१॥ - 'तिक्खाह' इत्यादि।
शब्दार्थ--'वक्षोभयं-वशं गतं वश में आए हुए 'सावययं वश्वापद मिक' जगली जानवर के समान लाटू-लब्धम्' प्राप्त हुये नारक 'जीव को नरकपाल तित्राहि लूलाहि-तीक्ष्णाभिः शूलाभिः' तीक्ष्ण धारवाले शूओं से निभाययंति-लिपातयन्ति' मारते हैं 'मूलविद्धाशूलविद्धाः शूल से वेधे हुए 'दुहओ-विधा' भीतर और बाहर दोनों
ओर से 'गिलाणा-रलानाः' ग्लान अर्थात् आनन्द हित और 'एगंत 'दुक्खा-एकान्तदुख: अत्यन्त दुःखबाले नारकि जीव 'कलुणं णंतिकरुण स्तनन्ति' दीन और करुणाजनक रुइन करते हैं ॥१०॥ ___ अन्वयार्थ--अपने वश में पड़े हुए जंगली पशु के समान प्राप्त हुए नारक जीव को परमायार्मिक असुर तीखे शूलों से भूमि पर गिरा મરતા નથી તેમનાં અંગેને ચગદીને તેમને ચૂરે કરવામાં આવે, તે પણ પારાની જેમ તે અંગે ફરી મળી જાય છે. પલા - va-'वसोगयं-वशं गतं' पशम मा 'सावययं व-श्वापदमिव' onal anनवना समान 'लद्धं-लब्धम्' प्राप्त थमे ना२३ पने न२४ास , 'तिक्वाहि सूलाहि-तिक्ष्णाभिः शूलामि' तिक्ष्ण थारपारा शूगोथी 'निवाचयतिनिपातयन्ति' मारे थे. 'सूलविद्धा-शूलविद्धाः' शुकथा वेधेट 'दुइओ-द्विधा'- २५४२ * भने महा२ मन माथी 'गिलाणा-ग्लानाः' खान अर्थात् मान २डित
मन ‘एगंतदुरखा-एकान्तदुःखा.' सत्यतम ना२894 'कलुणं थणंति-- करुणं स्तनन्ति' हीन भने ध्यान ३४न ४२ छ. ॥१०॥
સૂત્રાર્થ–જેવી રીતે શિકારી પિતે પકડેલા પશુને શસ્ત્રો વડે વીધી નાંખે છે, એ જ પ્રમાણે પિતાના હાથમાં આવેલા નારકેને પરમધામિકે જમીન