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________________ सूत्रकृतसूत्रे अन्वयार्थः--(अह) अथानन्तरम् (नासयदुक्खधम्मं ) शाश्ववदुःखधमं नित्यदुःखस्वभाव ( अ ) अपरमन्यत् (तं) तं नरकं (भे) भवते ( जहात हे) याथाaa (खाम) पक्ष्यामि - कथयिष्यामि (जहा) पथा (दुक्कड कम्मकारी) दुष्ककर्मकारिण. - क्रूरपापकर्माणः (बाला) वाला - परमार्थम जानानाः ( पुरेकडाइ ) पुराकृतानि पूर्वजन्मोपार्जितानि (कम्माई ) कर्माणि - ज्ञानावरणीयाद्यष्टकर्माणि (वेदति) वेदयंति - अनुभवन्तीति ॥ १ ॥ टीका - अह' अथ - अनन्तरम्, यदेव पूर्वस्मिन् मकरणे निर्दिष्टं वच्छेषथूतं द्वितीये कथयिष्यामि | 'अवर' अपरम् 'सासयदुक्ख शाश्वतदुःखधर्मम्, 'ले-हम्' उस नरक के विषय में 'भे भक्ते' आप को 'जहातहेणं याथातथ्येन' यथार्थ रूप से 'वक्खामि - प्रवक्ष्यामि' मैं कहूंगा 'जहा - याधा' जिस प्रकार 'दुकडकनकारी - दुष्कृतकर्मकारिणः पापकर्म करनेवाले 'वाला - बालाः' अज्ञानी जीव 'पुरेकडाई - पुराकृतानि' पूर्वजन्म में किये हुए 'कम्माई - कर्माणि' अपने कर्मों का 'वेदति - वेदयन्ति' वेदन करते हैं अर्थात् भोगते हैं ॥ १ ॥ ३९२ अन्वयार्थ -- इसके अनन्तर निरन्तर दुःखमय दूसरे नरक के विषय में यथार्थरूप से आप को कहूंगा । पापकर्म करने वाले और परमार्थ को नहीं जानने वाले अज्ञानी जीव पूर्वकृत कर्मों को जिस प्रकार भोगते हैं सो कहूँगा ॥१॥ टीकार्थ- फिर सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं - इसके पश्चात् पूर्व प्रकरण में कहने से जो शेष रह गया है, उसे दूसरे में कहूंगा । ते नरना विषयमा 'भे भवते' आपने 'जहात देणं - याथातथ्येन' यथार्थ ३५थी 'पवक्खामि - प्रवक्ष्यामि' हु' डीश 'जहा - यथा' ? अरे 'दुक्कड कम्मकारीदुष्कृतकर्मकारिणः ' पाय' ४२वावाजा 'बाला - बालाः' अज्ञानी व 'पुरेकड़ाईपुराकृतानि' पूर्वममां उरेल 'कम्माई - कर्माणि' पोताना भेनु' 'वेदंतिवेदयन्ति' वेन रे छे. अर्थात् लोगंवे छे. ॥१॥ · સૂત્રા”—હવે ખીજા કેટલાક નરકામાં ઉત્પન્ન થયેલા જવાને કેવી કેવી યાતનાઓ વેઠવી પડે છે, તે કહેવામાં આવશે. તથા પાપકર્મોનું સેવન કરનારા, પરમાને નહીં' જાણુનારા અજ્ઞાની જીવા પૂČકૃત કર્યાંનું ફળ કેવી रीते लोगवे छे, ते हवे हुं तमने उडी ॥१॥ 7 ટીકા આગલા ઉદ્દેશકમાં કુંભીપાક નરક આદિનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. હવે આ ખીજા ઉદ્દેશકમાં અન્ય નર્કના સ્વરૂપનુ પ્રતિપાદ્દન કરવા માટે
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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