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________________ २८६ सूत्रकृताङ्गो अन्वयार्थ:-(अह) अथानन्तरं खलु (से उबलद्धो होइ) स साधुः उपलब्धो भवति मम वशवतीति स्त्री ज्ञात्वा (तो) ततः (तहाभूएहिं) तथाभूतैः-प्रयोजन दासवत् साधु कार्ये प्रेरयति (अलाउच्छेदं) अलावु छेदं-पिप्पलकादिशरत्रं (पेहेहि) प्रेक्षस्त्र अनिवष्य आनय (वगुफलाइ) क्लाफलानि नारिकेलादीनि (आइराहिचि) आहर इति आनयेत्यर्थः ॥४॥ । इस प्रकार ऊपर ऊपर से मन.ज्ञ प्रतीत होने वाले कूट वचनजाल से साधु को विश्वास में लेकर वह स्त्री जो करती है, उसे सूत्रकार दिखलाते हैं-'अह णं' इत्यादि शब्दार्थ - 'अह-अथ इसके पश्चात् 'से उवलद्धो होइ-स उपलब्बो भवति' यह साधु मेरे वायत्ती हो गया है ऐसा जानकर 'तो-ततः' फिर वह साधुको 'लहाभूएहि-तथाभूतैः' दासके समान अपने कार्य में प्रेरित करती है 'अलोउच्छेदं' अलावुच्छेद'तुम्दा काटने के लिये 'पेहेहिप्रेक्षस्व' छुरी लाबो तथा 'वगुफलाई-वलाफलाणि' अच्छे फल 'आहराहित्ति-माहर इति' ले आवो ऐसा कार्य कहती है ॥४॥ . अन्वयार्थ--तत्पश्चात् जब साधु उपलब्ध हो जाता है अर्थात् उस स्त्री के अधीन हो जाता है तब वह विविध प्रकार के आदेश देकर साधु को दाल की तरह कार्यों में प्रेरित करती है। जैसे तूवें को काटने का शन पिप्पलक देखो, लाओ नारियल आकरु आदि फल ले आओ इत्यादि ॥४॥ આ પ્રકારે ઉપર ઉપરથી મને લાગતાં ફૂટ વચનોની જાળ બિછાવીને તે સ્ત્રી સાધુને પિતાને વશ કરી લે છે. ત્યાર બાદ સંયમથી ભ્રષ્ટ थये। साधुनी दी ६शा याय छे, तेनु वे सूत्रा२ ४थन ४२ छ-'अहण' त्यात. vt-'अह-अथ' ते ५छी ‘से उबरद्धो होइ-सः उपलब्धो भवति' मा साधु भारे १श २ गया छ तभ सभने 'तो ततः' ५छी त साधुन 'तहाभूपहि तथाभतेः' हासनी भात पाताना भां रे छ 'अलाउच्छेद-लाअच्छेदम्' तुमाना सम २भट 'पेहेहि-प्रेक्षस्व' छरी सा तथा 'वगुफलाई-बल्गुफलानि' साराको 'आहराहित्ति-आहर इति' ६ मा मापा કા બતાવે છે કે ૪ u સૂત્રાર્થ-આ પ્રકારે સાધુ જ્યારે તે સ્ત્રીને અધીન થઈ જાય છે, ત્યારે તે સ્ત્રી તેને વિવિધ પ્રકારની આજ્ઞાઓ આપે છે. તે સાધુ તેને, દાસ હોય તેમ તેને જુદા જુદા આદેશ આપવામાં આવે છે. જેમ કે “તૂ બડીને કાપવાની છરી તે શોધી લાવે જરા બજારમાં જઈને નાળિયેર આકરૂટ વિગેરે ફળ લઈ આ ઈત્યાદિ-૪
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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