SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे ___ अन्वयार्थः--(जाब) यावत् (जेयं) जेतारं पुरुष (न परसइ) न पश्यति तावत्पर्यन्तं कातरोपि (अपाणं) आत्मानं स्वात्मानम् (रं) शूरं संग्रामवीरं (मन्नइ) मन्यते (जुझंतं) युध्यमानम् संग्रामं कुर्वन्तम् (महारह) महारथं (दढधम्माण) दृढधर्माणं नारायणं कृष्णम् (सिसुवालोद) शिशुपाल हब-यथा कृष्णं युध्यमानं दृष्ट्वा शिशुपालः क्षोभमाप्तवानित्यर्थः ॥१॥ लहन करना चाहिए। तीसरे अध्ययन का प्रथम सूत्र यह है-'सूरं मण्णा अप्पाण' इत्यादि। शब्दार्थ-'जाव-यावत् ' जक्तक 'जेयं-जेतारम् ' विजयी पुरुष को न पस्सह-न त्यति नहीं देखता है तबतक हायर पुरुष 'अपाणंआत्मानम् ' अपने को 'स्वरं-शूरम् ' शूरवीर 'मन्नई' -मन्यते' मानता है 'जुज्नं तं-युध्यमानम् ' युद्ध करते हुए 'महार-महारथम् महारथी 'दढ धम्याण'-दृढ धर्माणम्' दृढ धर्म दाले-कृष्ण को देखकर 'सिसुपा. लोच-शिशुपालइच' शिशुपाल जले क्षोभ को प्राप्तहुआ था वैसे क्षोभ को प्राप्त होते हैं ॥१॥ अन्जयार्थ-जब तक विजेता पुरुष को नहीं देखता तब तक कायर श्री अपने आप को संग्राम शूर मानता है । संग्राम करते हुए महारथी और दृढधर्मा नारायण (कृष्ण) को देखकर जैसे (पहले गर्जना करनेवाला) शिशुपाल क्षोभ को प्राप्त हुआ ॥१॥ થાય છે. તે ઉપસર્ગો તેણે સમભાવપૂર્વક સહન કરવા જોઈએ. ત્રીજા અધ્યયનનું पड़े सूत्र मा प्रमाणे 2.-'सूरं मण्णइ अप्पाणं' त्या शीर्थ-'जाव-यावत्' यi सुधी जय-जेतारम्' विन्या ५३५ने, 'न पस्सइ-न पश्यति' ते नथी त्यां सुधी य२ पु३५ 'अप्पाणं-आत्मानम् । पाताने 'सूरं-शूरम्' शूरवीर 'मन्नइ-मन्यते' माने छे. 'जुझ तं-युध्यमानम्' युद्ध ४२di 'महारह-महारथम्' महारथी 'दढयम्माणं-दृढवर्माणम्' यम वाअपने नन ' सिपालोव-शिशुपालइव' शिशुपास रेभ सामने प्राप्त थयो । तम शासन प्रान थाय छे. !!३॥ સૂત્રાર્થ-જ્યાં સુધી વિજેતા પુરુષનો ભેટે ન થાય, ત્યાં સુધી કાયર પણ પિતાને સંગ્રામર માને છે. જેવી રીતે સમરાંગણમાં વીરતાપૂર્વક લડતા મહારથી અને દૃઢધમ નારાયણ (કૃષ્ણ)ને જોઈને (પહેલાં ગર્જના કરનાર) શિશુપાલ સુબ્ધ થઈ ગયા હતા, (એજ પ્રમાણે ઉપસર્ગો અને પરીષહ આવી પડતાં ઢીલા પિચા માણસે સંયમ માર્ગેથી વિચલિત થઈ જાય છે)
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy