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________________ ६७ आचारासने - - - से चेमि-अप्पेगे अच्चाए हणंति, अप्पेगे अजिमाए वहंति, अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, एवं हिययाए, पित्ताए, बसाए, पिच्छाए, पुच्छाए, वालाए, सिंगाए, विसाणाए, दंताए, दाढाए, णहाए, हारूणीए, अहीय, अट्टिमिजाए, अटाए, अणटाए, अप्पेगे "हिसिम में ति वा वहति, अप्पेगे 'हिंसंति में' त्ति वा वहंति, अप्पेगे 'हिसिस्संति मे' त्ति या वहति ।। सू० ७ ॥ छाया-- तद् ब्रवीमि-अप्येके अचायै नन्ति, अप्यके अजिनाय मन्ति, अप्येके मांसाय नन्ति, अप्येके शोणिताय घ्नन्ति एवं हृदयाय, पित्ताय, वसाय, पिच्छाय, पुच्छाय चालाय, शङ्गाय, विपाणाय, दन्ताय, दंष्ट्रायै, नखाय, स्नायवे, अस्न, अस्थिमज्जाय, अर्थाय, अनर्थाय, अप्येके 'अवधीपुरस्मा'-निति वा नन्ति, अप्येके 'हिंसन्त्यस्मा' निति वा नन्ति, अप्येके 'हनिप्यन्त्यस्मा'-निति वा घ्नन्ति ।। सू०७॥ मूलार्थ--में वह (प्रयोजन) कहता हूँ-कोई अर्चा शरीर के लिए उसकाय का विराधना करते हैं, कोई चर्म-चमडे के लिए घातं करते हैं, कोई मांस के लिए घात करते हैं, कोई रक्त के लिए घात करते हैं, कोई हृदय के लिए, पित के लिए, चर्बी के लिए पंख के लिए, पूंछ के लिए, बाल के लिए, सींग के लिए, विषाण (सुअर का दांत) के लिए, दांत (हाथीदांत) के लिए, दाढों के लिए, नख के लिए, स्नायु के लिए, हड्डी के लिए, मज्जा के लिए, अर्थ के लिए, अनर्थ के लिए-(निरर्थक) कोई 'हमें मारा था' इस भावना से, कोई 'हमें मारता है इस भावना से, और कोई 'हमें मारेगा' इस भावना से त्रसकाय का घात करते हैं। सू०७॥ મૂલાઈ—કહું છું –કેઈ અર્ચા (શરીર) માટે ત્રસકાયને ઘાત કરે છે. કેઈ ચાંમડી માટે ઘાત કરે છે. કેઈ માંસ માટે ઘાત કરે છે. કોઈ રક્ત-લેહી માટે ઘાત કરે છે. કેઈ હદય માટે, પિત્ત માટે, ચરબી માટે, પાં માટે, પૂછડા માટે, वाण भाटे, शी। भाटे, विषाय (सूपरना ii) भाटे, साथी id भाटे, हाढा भाट, નખ માટે, સ્નાયુ માટે, હાડકાં માટે, મજા માટે, અર્થ માટે અનર્થ નિરર્થક), भने भार्या उता' मे लानाथी, th' भने मात्र छ । समानाथी, भनाई समन भारसे' मा मापनायी सायना धात ४३ छ. ॥ २०७॥
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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