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________________ आचारचिन्तामणि -टीका अध्य. १ उ. ५ . २ वनस्पतिजीवोपघात दुष्फलम् ६१७ एवं च वनस्पतिनिप्पन्नेषु शब्दादिगुणेषु वर्तमानः संसारं प्राप्नोति स च संसारी रागद्वेपमलिनात्मकतया पुनः शब्दादिगुणेषु वर्तमान तुर्गतिकसंसारतो न कदाचिद् वहिर्यातीत्यर्थः ॥ सु० २ ॥ शहादिगुणोपलब्धिमात्रं न संसारान्तः पतनस्य कारणं, किन्तु तत्र मूच्छेवेत्याह -'उ', इत्यादि । मूलम्- उइ अहं तिरियं पाईण पासमाणे रुवाई पास, सुणमाणे सहाई सुणेड़ | उइ अहं तिरियं पाईणं मुच्छमाणे रूवेसु मुच्छर सद्देसु याचि । एस लोए विपाहिए | सू० ३ ॥ छाया उर्ध्वम् अधः तिर्यक प्राचीनं पश्यन् रूपाणि पश्यति, शृण्वन शहान शणोति, ऊर्ध्वम् अधः तिर्यक् प्राचीनं मूर्च्छन् रूपेषु मूर्च्छति, शब्देषु चापि । एष लोकः व्या ख्यातः ॥ सू० ३ ॥ page इस प्रकार वनस्पति से तैयार होने वाले इन्द्रिय-विषयों में वर्तमान जीव संसार प्राप्त करता हैं । संसारी जीव राग-द्वेष से मलिन होता है, अतः फिर विषयों में प्रवृत्त होता है । इस प्रकार यह कभी संसार से बाहर नहीं निकल पाता ॥सू० २|| शब्द आदि विपयों को ग्रहण करने मात्र से संसार में पतन नहीं होता परन्तु उन में (गृद्धि) होना हो पतन का कारण है, यह कहते हैं - 'उद.' इत्यादि । मूलार्थ - -ऊपर, नीचे, और सामने तिरछी दिशा में दृष्टि डालता हुआ रूपों को देखता है, सुनता हुआ शब्द सुनता है । ऊपर, नीचे और सामने तिरछी दिशा में रूपों में मूर्च्छित होता है और शब्दों में भी । यह लोक कहा गया है | सू० ३ ॥ એ પ્રમાણે વનસ્પતિથી તૈયાર થવાવાળા ઇન્દ્રિય વિષયેામાં વત્તમાન જીવ સસારને પ્રાપ્ત કરે છે, સંસારી રાગદ્વેષથી મલિન થાય છે, તેથી ફરીને વિર્યેામાં પ્રવૃત્ત થાય છે. આ પ્રમાણે તે કેઈ દિવસ સંસારથી અહાર નીકળી શકતા નથી (સૂ.૨) શબ્દ આદિ વિષયને ગ્રહણ કરવા માત્રથી સંસારમાં પતન થતુ નથી, પરન્તુ तेमां भूर्च्छा (गृद्धि) थवाधीन पतन थाय छे, ते 'उड्ढ़, 'त्याहि. ઉપર, નીચે અને સામે તિરછી દિશામાં ષ્ટિ નાંખીને રૂપાને જીવે છે, સાંભળતા થકા શબ્દ સાંભળે છે, ઉપર નીચે અને સામે તિરછી દિશામાં રૂપામાં ने शोभां पशु भूर्छित थाय छे, या बोर्ड हेवाय हे ॥ ३ ॥ મૂલા प्र. आ.-७८
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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