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________________ ३९४ ओचाराने कल्पातावा:- कल्पमतीताः-अतिक्रान्ताः कल्पातीताः। सौधर्मादिद्वादशकल्पवहिर्भूताः स्वामिसेवकाद्याचारवर्जिताः, स्वातन्त्र्यादहमिन्द्रनाम्ना प्रसिद्धाः, भद्रादिनवग्रेवेयकविमान-विजयादिपञ्चानुत्तरविमानाधिवासिनो देवाः कल्पातीताः। __सौधर्मादिद्वादशकल्पतथोमसंख्यातयोजनकोटिकोटिपूपरि . नववेयकानि विमानान्युपर्युपरि सन्ति । पुरुषाकारलोकस्य ग्रीवास्थानीयतया विमानानि ग्रैवेयकान्युच्यन्ते । तद्वासिनो देवा अपि त्रैवेयका उच्यन्ते । सर्वोपरितनग्रेवेयकविमानादूर्ध्वमसंख्यातयोजनकोटिकोटयुपरि पञ्चानुत्तरविमानानि सन्ति । तत्रैक मध्यभागे, चतुर्दिक्षु चत्वारि । अनुत्तरविमानवासिनो देवा अनुत्तरा उच्यन्ते । कल्पातीत- . जो देव कल्प से परे हैं वे कल्पातीत कहलाते हैं, अर्थात् सौधर्म आदि कल्पों से बाहर, स्वामी, सेवक आदि मर्यादा से रहित-स्वतंत्र होने के कारण अहमिन्द्र नाम से प्रसिद्ध भद्र आदि नौ ग्रैवेयकों में तथा विजय आदि पांच अनुत्तर विमानों में निवास करने वाले देव कल्पातीत कहलाते हैं। सौधर्म आदि बारह कल्पों से ऊपर असंख्यात कोडाकोडी योजन जाकर नौ प्रैवेयक विभान एक दूसरे के उपर अवस्थित हैं। पुरुषाकार लोक की ग्रीवा के स्थान पर जो विमान हैं, वे ग्रैवेयक विमान कहलाते हैं। सब से ऊपर के अवेयक विमान से ऊपर असंख्यात कोडाकोडी योजन जाकर पांच अनुत्तर विमान हैं। उन में से एक मध्य भाग में है और चार चारों दिशाओं में हैं । अनुत्तरविमानवासी देव अनुत्तर कहलाते हैं । पातीतજે દેવો કલ્પથી બહાર છે તે કલ્પાતીત કહેવાય છે. અર્થાત સૌધર્મ આદિ કથી બહાર સ્વામી-સેવક આદિ મર્યાદાથી રહિત, સ્વતંત્ર હવાના કારણે અહમિન્દ્ર નામથી પ્રસિદ્ધ છે. ભદ્ર આદિ નવરૈવેયકમાં, તથા વિજય આદિ પાંચ અનુત્તર વિમાનોમાં નિવાસ કરવા વાળા દેવ તે કલ્પાતીત કહેવાય છે. . સૌધર્મ આદિ બાર કાથી ઉપર અસંખ્યાત કોડાકોડી જન જઈને નવ શ્રેયક વિમાન એક બીજાની ઉપર અવસ્થિત છે. પુરૂષાકાર લેકની ગ્રીવા (ક) ના स्थान ५२२ विमान छे. ते अवेय विमान उपाय छे. . . . . । સૌથી ઉપરના વેયક વિમાન ઉપર અસંખ્યાત કેડા-કેડી જન જઈને પાંચ અનુત્તર વિમાન છે. તેમાંથી એક મધ્ય ભાગમાં છે, ચાર ચારેય દિશાઓમાં છે. मनुत्तविभानपासी मनुत्तर ४डेवाय छे..
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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