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________________ - आंचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ २.५ लोकवादिप्र० २९५ नवग्रैवेयकनामानि यथा - १ भद्र - २ सुभद्र - ३ सुजात -४ सुमानस - ५ सुदर्शन-६ प्रियदर्शना-७ऽमोध-८मुप्रतिभद्र-९यशोधराणि । पञ्चानुत्तरविमानानि यथा-१ विजय-२वैजयन्त-३जयन्ता-४ऽपराजित५ सर्वार्थसिद्धाख्यानि । अविद्यमानमुत्तर-मुत्कृष्टं विमानादि येभ्यस्तान्यनुत्तराणि । तानि च विमानानि-अनुत्तरविमानानि । तीर्थरादीनां समवसरणादौ कल्पोपपन्नदेवा गमनागमनं कुर्वन्ति । कल्लातीतदेवास्तु स्वस्थानादन्यत्र न गच्छन्ति । प जीवनिकायभेद-संकलनम् पड्जीवनिकायानां त्रिपप्टट्यत्तरपञ्चशतानि (५६३) भेदाः। तथाहिपृथिव्यप्तेजोवायुकायानां प्रत्येकं यादर-मुक्ष्म-भेदाद् द्वैविध्येऽष्टधा । तेपां नौ अवेयकों के नाम-(१) भद्र, (२) सुभद्र, (३) सुजात, (४) सुमानस, (५) सुदर्शन, (६) प्रियदर्शन, (७) अमोघ, (८) सुप्रतिभद्र, और (९) यशोधर हैं। पांच अनुत्तर विमान-(१) विजय, (२) वैजयन्त, (३) जयन्त, (४) अपराजित और (५) सर्वार्थसिद्ध । जिन से ऊपर अर्थात् उत्कृष्ट और कोई विमान नहीं वे अनुत्तर विमान कहलाते हैं । तीर्थकर आदि के समवसरण आदि में कल्पोपपन्न देव गमनागमन करते हैं । कल्पातीत देव अपने स्थान से अन्य जगह नहीं जाते । __पड्जीवनिकाय के भेदों का संकलनपजीवनिकायों के कुल पांचसो त्रेसठ (५६३) भेद हैं। वे इस प्रकार हैंपृथिवी, अप्, तेज, और वायुकाय के बादर और सूक्ष्म के भेद से आठ भेद हुए। नपवयन नाभ-(१) बद्र, (२) सुभद्र, (3) सुनत, (४) सुभानस, (५) सुदर्शन, (६) प्रियशन, (७) माध, (८) सुप्रतिम 4 (6) A५२ छे. पाय मनुत्तर विभान-(१) विनय, (२) वैयन्त, (3) यन्त, (४) पारित અને (૫) સર્વાર્થસિદ્ધ. જેનાથી ઉત્તર અર્થાત્ ઉત્કૃષ્ટ કેઈ વિમાન ન હોય તે અનુત્તર વિમાન કહેવાય છે. તીર્થકર આદિન સમવસરણ આદિમાં કપિપન્ન દેવ ગમનાગમન કરે છે. કલ્પાતીત દેવ પોતાના સ્થાનેથી અન્ય જગ્યાએ જતા નથી. વહૂછવનિકાયના ભેદોનો યોગ १. ५३००१नियो एस पांयस स (463) ले छे. ते 21 प्रहारे हैंપૃથ્વી, અપૂ, તેજ અને વાયુકાય, તેના આદર અને સૂક્ષમના ભેદથી આઠ ભેદ થયા.
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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