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________________ २८९ - आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ सू.५ लोकवादिम . वैमानिकदेवानां द्वौ भेदी-कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च । फल्पा आचारः स. चेहेन्द्रसामानिकत्रायविंशादिव्यवहाररूपस्तमुपगताः कल्पोपपन्नाः= सौधर्मादिदेवलोकनिवासिनो वैमानिका देवाः। यद्वा-कल्पेषु सौधर्मादिषु उपपन्नाः सौधर्मादिदेवंलोकोत्पन्ना वैमानिकदेवाः कल्पोपपन्नाः। यद्वा-कल्पेन-नियमेन इन्द्रसामानिकादिस्वामिसेवकादिभावरूपमर्यादयोपपन्नाः युक्ताः कल्पोपपन्नाः। . . . ..: . १इन्द्र- २सामानिक- ३त्रायस्त्रिंश- ४ लोकपाल-५ पारिपद्या-६ नीका७त्मरक्षका-८ऽऽभियोगिक-९प्रकीर्णाः, किल्विपिकाच१०. स्वस्वमर्यादापालकतया कल्पोपपन्ना इत्युच्यन्ते। तन्द्राः - सामानिकादिदेवानामधिपतयः । इन्द्रसमानाः-सामानिकाः। मन्त्रिपुरोहितस्थानीयास्त्रायस्त्रिंशाः। सीमारक्षका वैमानिक देव द्रो प्रकार के हैं-कल्पोपपन्न और कल्पातीतः । कल्प का अर्थ है-आचार । यहां इन्द्र, सामानिक, बायस्त्रिंश आदि का व्यवहार कल्प माना गया है, और यह कल्पं जिन में पाया जाय वे फल्पोपपन्न कहलाते हैं। सौधर्म आदि देवलोकों में निवास करने वाले वैमानिक देव कल्पोपपन्न हैं। अथवा कल्प से अर्थात् नियम से अर्थात् इन्द्र, सामानिक आदि, या स्वामी-सेवक आदिभावरूप मर्यादा से युक्त देव कल्पोपपन कहलाते हैं। इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश, लोकपाल, पारिषद्य, आनीक. आत्मरक्षक, भाभियोग्य, प्रकीर्णक और किल्विपिक, ये दश अपनी-अपनी मर्यादा का पालन करते हुए कल्पोपपन्न कहलाते है। सामानिक आदि देवों के अधिपति इन्द्र कहलाते हैं। इन्द्र के समान : वैभानि हेप मे ४२ना छ-(१) ४८यापपन्न मने (२) ३६५ातात. eval અર્થ છે-આચાર. અહિં ઈન્દ્ર, સામાનિક, ત્રાયઅિંશ આદિને વ્યવહાર કલ્પ માન્યો છે, અને આ ક૯૫ જેનામાં જોવામાં આવે છે તે કા૫પન્ન કહેવાય છે. સૌધર્મ આદિ દેવકેમાં નિવાસ કરવાવાળા વૈમાનિક દેવ કોપપન્ન છે. અથવા કલ્પથી અર્થાત, નિયમથી અર્થાત ઈન્દ્ર સામાનિક આદિ, અથવા સ્વામી–સેવક આદિ ભાવરૂપ મર્યાદાથી યુક્ત દેવ કલ્પપપન કહેવાય છે. न्द्र, साभानिड, त्रायशि, सास, परिषध, मामी, मात्भरक्ष४, मालियोय, પ્રકીર્ણક અને કિલ્વિષિક, પિત–પોતાની મર્યાદાનું પાલન કરતા થકા ક૯પપન્ન ४डेवाय छे. સામાનિક આદિ દેવેના અધિપતિ ઈન્દ્ર કહેવાય છે. ઈન્દ્રનાં સમાન સામાનિક प्र.आ.-३७
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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