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________________ आचारचिन्तामणि- टीका अध्य. १. उ१. सू. ५. लोकवादिम० २८७ व्यन्तराः पोडशविधाः - १ पिशाच - २ भूत - ३ यक्ष-४ राक्षस - ५ किनर ६ किंपुरुष-७महोरग - ८गन्धर्वा-९ प्रज्ञप्तिक- १० पञ्चप्रज्ञहिक - ११ ऋपिवादिक १२ भूतवादिक - १३ क्रन्दित - १४ महाक्रन्दित १५ कृष्माण्ड - १६पतंग भेदात् । ( स्था. स्या. २ उ ३ ) जृम्भका अपि व्यन्तरदेवा दश सन्ति । यथा- (१) अन्नजृम्भकाः (२) पानजृम्भकाः, (३) वत्रजृम्भकाः, (४) लयनजृम्भकाः, (५) शयनजृम्भकाः, (६) पुष्पजृम्भकाः, (७) फलजृम्भकाः, (८) पुप्पफलम्भकाः, (९) विद्याजम्भकाः, (१०) अव्यक्तजृम्भकाः । (६) ज्योतिष्कदेवा: ज्योतींषि - प्रभापुञ्जस्वरूपाणि समुज्ज्वलानि विमानानि, तत्र भवाः व्यन्तर देव सोलह हैं - (१) पिशच, (२) भूत, (३) यक्ष, (४) राक्षस, (५) किन्नर, (६) किंपुरुष, (७) महोरग, (८) गन्धर्व, (९) अप्रज्ञप्तिक, (१०) पञ्चप्रप्तिक, (११) ऋषिवादिक, (१२) भूतवादिक, (१३) क्रन्दित, (१४) महाक्रन्दित, (१५) कूष्माण्ड, और (१६) पतङ्ग ( स्था. स्था. २ उ. ३) जृम्भक व्यन्तर देव भी दश प्रकार के हैं । जैसे- (१) अन्नजृंभक, (२) पानजृंभक, (३) वस्त्रजृंभक, (४) लयनजृंभक, (५) शयनजृंभक, (६) पुष्पजृंभक, (७) फलजुंभक, (८) पुष्पफलजृंभक, (९) विद्याजृंभक और (१०) अव्यक्तजृंभक । (३) ज्योतिष्क देव प्रभा के पुञ्ज के समान अत्यन्त उज्ज्वल विमानों में उत्पन्न होने वाले व्यन्तर हेव सोज छे (१) पिशाय, (२) लूत (3) यक्ष, (४) राक्षस ( 4 ) सिन्नर, (९) डियु३ष, (७) भोरंग, (८) गधव, (E) अप्रज्ञप्तिज्ञ, (१०) पंथप्रज्ञसिङ, (११) ऋषिवाहिङ, (१२) लूतवाहिक, (१३) इन्हित, (१४) महाइन्हित, (१५) ईषभांड भने (१६) पतंग, ( स्था.. स्था. २ उ. ३ ) भूल व्यन्तर हेव पशु इस अारना छे, प्रेम- (१) अन्नलल४, (२) यान लृलङ, (3) पत्र, (४) सयन लङ, (4) शयनलल, (६) युष्य नृलङ, (७) इंसल (८) पुण्यश्लल, (ङ) विद्यान्न (ग, गने (१०) भव्यता (3) ज्योतिष्णुदेवी પ્રભાના પુંજ સમાન અત્યંત ઉજ્જવલ વિમાનામાં ઉત્પન્ન થવા વાળા દેવ
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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