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________________ २०० आचारामंत्र तत्र - मनुष्य - गो-महिप्य-जा- विका-ऽध - खरो-4- मृग-चमर-वराहगवय-सिंह-व्याघ्र--दीपि-ध-गगाल-मार्जारादयो जरायुजाः। सर्प-गोधाकुकलास-गृहगोधिका-(पल्ली)-मत्स्य-कर्म-नक्र-शिशुमारादयः, पक्षिषु यथालोमपक्षाः, हंस-चाप-शुक-गृध्र-व्येन-पारावत-काक-मयूर-मण्ड-चकादयश्चाएडजाः । पोता-जाता इति - पोतजाः शुद्धमसवाः, न तु जरायुजबच्चादिवेष्टिता इति यावत् , यथा - शल्लक-इस्ति-वाविल्लापक-शश-शारिका-नकुलमूपिकादयः, पक्षिषु च चर्मपक्षाः, जलूका-बल्गुलि-भारण्डपक्षि-विरालादयश्चपोतजाः । जीव जरायुज कहलाते हैं। मनुष्य, गौ, भैंस, बकरी, मेप, घोडा, गधा, ऊंट, मृग, चमर शूकर, रोझ, सिंह, वाघ, रीछ, द्वीपि, कुत्ता, सियार, बिलाव आदि जरायुज हैं। सर्प, गोहेरा, ककलास, छिपकली, मच्छ, कछुवा, नक, शिशुमार आदि, तथा पक्षियों में लोमपक्षी, हंस, चाप, शुक, गूध, बाज, कबूतर, कौवा, मोर, मण्ड (एक जातका पक्षी), बगुला आदि अण्डज है । जो जरायुज की भाँति चमडे से लिपटे हुए उत्पन्न न हों, वे पोतन कहलाते हैं, जैसे-सेही, हाथी, श्वाविल्लापक, शशक, शारिका, नकुल, मूपिक आदि। पक्षियों में चमपक्षी, जळूका ( जोक), वल्गुली, भारण्डपक्षी विराल आदि पोतज है। - - - Ji, घास, अधेस, 12, भृगला, भ२ (हिमालयमा यती मे . पाय विशेष) भू, रो, सिस, पाध, रीछ, छीपा, सुतरा, शियाण, भिक्षाsi, पो३ सयुद्ध छ, स५ घायरा, ४YAai, aगी , भ२छ, आया, न (भा२) शिशुभार (में પ્રકારનું જલચર પ્રાણી) આદિ તથા પક્ષિઓમાં લેમપક્ષી, હંસ, ચાષ (એક ondi alel पांभोवाणु ना रे मी) २४-(पोपट), ध, मान, भूतर, કાગડે, મેર-મંડૂ (એક પક્ષી) બગલા વગેરે. અંડજ છે. જે જરાયુજ પ્રમાણે ચામડીથી વિંટાએલાં ઉત્પન્ન ન થાય તે પિતજ કહેવાય છે. જેમકે-હી-(સાહુડી હાથી, શ્વવિદત્રાપક, શશક, શારિકા, નકુલ–ળીઓ, મૂષિક-ઉંદર વગેરે પક્ષીઓમાં ચર્મપક્ષ(રૂંવાડાં વગરનાં ચામડાની પાંખેવાળા) જલ્કા (જળ) વશુલી ( 43वां) सा-पक्षी, विराल माह बात छे.
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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