SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपकारी सदा मैं उपकारी तो सदैव ही हूं, हमेशा से सभी की लेकिन अणु मात्र भी कभी भी किसी की हो न सकी मां ने जन्म दिया तो बड़ा होने के लिये ही और फिर मां से अलग ही होने के लिये, फिर भी मैं रही उपकारी. इस शरीर को खान-पान मिला, स्वस्थता भी, यौवन भी जग की सुविधायें भी मिली पर जब शरीर ही मेरा नहीं तो जग में तो रही पली अलग ही होने के लिये, फिर भी रही उपकारी. देव गुरु शास्त्र मिले, उन्हीं से तो ज्ञान भी मिला, संग किया वे ही मेरे पूज्य, उन्हीं का है सहारा मुझे, फिर निग्रंथ गुरु ने ही कहा छोड़ मुझे पहचान स्वयं को, तू है अलग ही,फिर भी रही उपकारी. * * * 167
SR No.009270
Book TitleSurakshit Khatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Maru
PublisherHansraj C Maru
Publication Year2014
Total Pages219
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy