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________________ ४८ योगकल्पलता कठिन से कठिन कार्य भी सुलभता से देवों की कृपा से सिद्ध होते हैं यह नमस्कार का ही फल है।।११।। सर्वदेशविदेशेषु विद्वजनसमागमात्। सर्वदर्शनपाण्डित्यं नमस्कारस्य सत्फलम्।।१२।। कहीं भी देश विदेश में विद्वानों के समागम से सर्वदर्शनों में पाण्डित्य होना यह नमस्कार महामन्त्र का फल है।।१२।। सदा वादविवादेषु प्रतिवादिपराजयः। सर्वोच्चराजसन्मानो नमस्कारस्य सत्फलम्।।१३।। हमेशा वादविवाद में प्रतिवादी का पराजित होना, राजा के द्वारा सर्वोच्च सम्मान की प्राप्ति नमस्कार मन्त्र का फल है।।१३।। विद्यावृद्धैः सदा मान्यं पराकोटिसमाश्रितम्। वक्तृत्वं च कवित्वं च नमस्कारस्य सत्फलम्।।१४।। विद्यावृद्धों (उच्चकोटि के विद्वानों) के द्वारा मान्य श्रेष्ठ कोटि के वक्तृत्व एवं कवित्व की प्राप्ति नमस्कार मन्त्र का फल है।।१४।। कौशलं ग्रन्थनिर्माणे वाक्चातुर्यं तथाऽद्भुतम्। धर्मोपदेशसाफल्यं नमस्कारस्य सत्फलम्।।१५।। ग्रन्थ निर्माण में कुशलता, अद्भुत वाक्पटुता, धर्मोपदेश में सफलता ये सब नमस्कार महामन्त्र के फल हैं।।१५।।। महाप्रज्ञा विवेकश्च श्रुतं शीलं धियो गुणाः। श्रेयोमार्गे प्रवृत्तिर्वै नमस्कारस्य सत्फलम्।।१६।। बहुत गहरा ज्ञान, विवेक, शास्त्र का अभ्यास (बुद्धि के गुण), सदाचार, मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति ये सभी गुण नमस्कार का ही फल है।।१६।। पाटवं सर्वशास्त्रेषु रहस्यार्थप्रकाशकम्। आत्मतत्त्वावबोधश्च नमस्कारस्य सत्फलम्।।१७।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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