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________________ नमस्कारनुतिः ३१ उत्तमोत्तमतत्त्वाय भावश्रद्धाविधायिने। महामाङ्गल्यरूपाय नमस्काराय मे नमः।।१८।। भाव और श्रद्धा को देनेवाले सभी तत्त्वों में उत्तमोत्तम तत्त्व महामङ्गलरूप नमस्कार मन्त्र को मेरा नमन है।।१८।। सर्वमन्त्रसुसिद्ध्यर्थं मातृकामूलरूपिणे। सदा भक्तिप्रकर्षेण नमस्काराय मे नमः।।१९।। सभी मन्त्रों की सिद्धि के लिए मूल मातृकारूप नमस्कार मन्त्र को अत्यन्त भक्तिपूर्वक नमन करता हूँ।।१९।। तस्मै गुह्यातिगुह्याय प्रमुखालम्बनाय च। सर्वशास्त्रसमासाय नमस्काराय मे नमः।।२०।। जीवों के प्रमुख आधार सभी शास्त्रों के संक्षेपरूप जो अत्यन्त गोपनीय है ऐसे नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमन है।।२०।। सर्वदोषविनाशाय देवताभावसिद्धये। सम्प्रदायानुसारेण नमस्काराय मे नमः।।२१।। सभी दोषों को नाश करनेवाले सम्प्रदाय के अनुसार देवत्व की सिद्धि के लिये नमस्कार महामन्त्र को मैं नमन करता हूँ।।२१।। पापनाशकमन्त्राय कलिदोषनिवृत्तये। क्षेत्रेऽस्मिन् विषमे काले नमस्काराय मे नमः।।२२।। इस क्षेत्र में तथा विषमकाल में कलि के दोष से छुटकारा पाने के लिए जो पवित्र मन्त्र है, उस नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमन हो।।२२।। विशुद्धात्मस्वरूपाय सद्गतिदायिने सदा। अज्ञानध्वान्तसूर्याय नमस्काराय मे नमः।।२३।। सद्गति देनेवाला विशुद्ध आत्मस्वरूप तथा अज्ञानरूप अन्धकार को नाश करने में सूर्य के समान नमस्कार महामन्त्र को नमन हो।।२३।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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