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________________ नमस्कारनुतिः यत्प्रसादात्प्रपश्यन्ति लोकालोकं हि योगिनः। तस्मै ज्ञानार्करूपाय नमस्काराय मे नमः ॥ ६ ॥ जिसकी कृपा से योगी लोग लोक-अलोक को देखते हैं, उस ज्ञानरूप सूर्य नमस्कार मंत्र को मेरा नमन है || ६ || त्रैलोक्याधारभूताय सर्वक्लेशविघातिने । मिथ्यात्वनाशिने तस्मै नमस्काराय मे नमः ।।७।। तीनों लोक के जीवों के आधार, सभी प्रकार के क्लेशों को एवं मिथ्यात्व का नाश करनेवाले नमस्कार मन्त्र को मेरा प्रणाम । । ७ ।। योगविज्ञानसाराय जन्ममृत्युविरोधिने । लोकोत्तराय मन्त्राय नमस्काराय मे नमः ॥ ८ ॥ २९ दूर करनेवाले योगविज्ञान के सारभूत तथा जन्म - मृत्यु को रोकनेवाले लोकोत्तर मन्त्ररूप नमस्कारमन्त्र को मेरा प्रणाम ||८|| मोहशत्रुविनाशश्च सर्वोपद्रववारणम् । जायते येन तस्मै तु नमस्काराय मे नमः ।। ९ । जिस महामन्त्र से मोहरूप शत्रु का नाश होता है तथा सभी उपद्रवों का निरोध होता है उस नमस्कार महामन्त्र को मेरा प्रणाम है ।। ९ ।। विश्वप्रतीतिरूपाय मनोविकल्पनाशिने । आन्तरहोमसिद्ध्यर्थं नमस्काराय मे नमः ।। ११॥ एकस्मै सर्वदा यस्मै स्पृह्यते मोक्षभिक्षुकैः । तस्मै तु पूर्णयोगाय नमस्काराय मे नमः ।। १० ।। मोक्षाभिलाषी जिस एक (मन्त्र) की इच्छा करते हैं उस पूर्णयोगरूप नमस्कार महामन्त्र को मेरा प्रणाम ।।१०।। मन के विकल्प (अस्थिरता ) को समाप्त करनेवाला, विश्व की प्रतीति रूप नमस्कार महामन्त्र को आन्तरहोम की सिद्धि के लिए मैं नमन करता हूँ ।। ११।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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