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________________ नमस्कारनिरूपणम् नमस्कारेण मन्त्रेण त्रैलोक्यमरुणीकृतम्। भोवयेद्यो हि सर्वत्र वशे तस्य जगत्त्रयम्।।३६॥ इस रंगीले (रक्तिम) संसार को जो नमस्कारमन्त्र के द्वारा यह त्रिलोक रक्तवर्णी हो गया है ऐसी भावना करनेवाले साधक को तीनों लोक वश हो जाते हैं।।३६।। नमस्कारेण मन्त्रेण बहिर्वृत्तिविनाशतः। सत्त्ववृद्ध्या चिदानन्दे साधको लीयते स्वयम्।।३७।। नमस्कारमन्त्र से बहिर्वृत्ति का नाश होकर (मन अन्तर्मुखी हो जाता है) सत्त्व की वृद्धि होती है और साधक स्वयं ही चिदानन्द में लीन हो जाता है।।३७।। नमस्कारेण मन्त्रेण पूजनं परमेष्ठिनाम्। अभेदो मन्यते भावाद्वाच्यवाचकयोर्यदा।।३८।। नमस्कारमन्त्र से जब भाव से वाच्यवाचक का अभेद प्रतीत होता है तब परमेष्ठि की पूजा होती है।।३८।। नमस्कारेण मन्त्रेण जपे सूक्ष्मे कृते सति। भवेन्नादानुसन्धानं सत्यं सत्यं न संशयः।।३९।। नमस्कारमन्त्र से जप सूक्ष्म करने से निश्चित ही नाद का अनुसन्धान होता है, इसमें कोई सन्देह नहीं।।३९।। नमस्कारेण मन्त्रेण स्वरूपरमणात्सदा। क्षीयन्ते सर्वकर्माणि राजयोगेन सत्वरम्।।४०।। नमस्कारमन्त्र से अपने अन्दर (आत्मा में) सदा रमण (मनन) करने से राजयोग से शीघ्र ही सभी कर्मों का क्षय हो जाता है।।४०।। नमस्कारेण मन्त्रेण चितवृत्तिनिरोधतः। ब्रह्मतत्त्वं स्वयं शीघ्र स्वात्मान्येव प्रकाशते।।४१।। नमस्कारमन्त्र द्वारा चित्त की वृत्तियों का निरोध (मन का स्थिरीकरण) करने से अपनी आत्मा में ब्रह्मतत्त्व स्वयं शीघ्र ही प्रकाशित होता हैं।।४१।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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