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________________ २४ योगकल्पलता नमस्कारेण मन्त्रेण योगाभ्यासरतैः सदा। बुधैस्तु नीयते कालो ध्यानाद्धि परमेष्ठिनाम्।।३०।। नमस्कारमन्त्र के कारण योगाभ्यासी पंडित ध्यानमात्र से ही पञ्चपरमेष्ठि को ध्यान द्वारा समय यापन करते हैं।।३०।। नमस्कारेण मन्त्रेण ब्रह्मचर्ये रतो नरः। ज्ञात्वा गुरुमुखाच्छास्त्रं सर्वविद्याधिपो भवेत्।।३१।। नमस्कारमन्त्र से ब्रह्मचारी नर गुरुमुख से शास्त्र का अभ्यास करके सभी विद्याओं का अधिपति हो जाता है।।३१।। नमस्कारेण मन्त्रेण ज्योतिरूपतया स्थिताम्। जिह्वाग्रे कुण्डलीं ध्यायन्मूल्ऽपि स्याद्गृहस्पतिः।।३२।। नमस्कारमन्त्र द्वारा ज्योतिरूप कुण्डली का जिह्वा के अग्रभाग में ध्यान करते हुए मूर्ख भी बृहस्पति (विद्याओं का स्वामी) हो जाता है।।३२।। नमस्कारेण मन्त्रेण पाषाणेन समो जनः। भवेच्चातुर्ययुक्तश्च महावाक्यार्थपारगः।।३३।। पत्थर के समान बुद्धिहीन मनुष्य भी नमस्कारमन्त्र के प्रभाव से शास्त्रों के महावाक्यार्थ जान लेता है।।३३।। नमस्कारेण मन्त्रेण भावनाध्यानतत्परः। आत्मविज्ञानमात्रेण प्रोच्यते श्रुतकेवली।।३४।। नमस्कारमन्त्र के कारण भावना ध्यान में लीन साधक, केवल आत्मा का ज्ञान होने पर भी श्रुतकेवली कहा जाता है।।३४।। नमस्कारेण मन्त्रेण ध्याता लोकेऽतिविश्रुतः। सर्वागमार्थवेत्ता च सर्वज्ञो जायते ध्रुवम्।।३५।। ध्यानी नमस्कारमन्त्र से लोक में ख्यातिवान् होता है, सभी आगमों के अर्थ को जाननेवाला होता है तथा निश्चित ही (कालान्तर में) सर्वज्ञ होता है।।३५।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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