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________________ १३८ मन:स्थिरीकरणप्रकरणम् चउदसिगिगविगलमणा, पंचसो अयर पंच दस वीसं। दुन्नि सया संपुन्ना अंसा उवरिं इहं नत्थि।।२९।। पणदसि सिगविगलमणा, तिन्नि उ चउदंस अयरपणदसगं। इगवीस चउदसत्तरबिसई पणदस च्छ चउरंसा।।३०।। सोलसिसिगविगलमणा, अडपणतीसं सअयरपणिगारा। बावीसडवीसहिया, दसई पणवीस पनर तिस वीसं।।३१।।गीतिः। अधठारिगविगलमणा, पाउ छच्चयर पायसंजुत्ता। सड्डा बारस पणवीस, सदसई उ संपन्ना।।३२।। अट्टारिगविगलमणा, नव पणतीसं सअयर च्छ ब्बारा। पणवीस दसयसगवन्न, पनर तीस पणवीस पण अंसा वीसिसु इगविगलमणा, सत्तंस दुगं च अयरसगचउदा। अडवीसं पणसीया, दुसई इग दु चउ पंच सत्तंसा।।३४।। गीतिः। तीसिसु इगविगलमणा, सगंस तिगमयर दसिगवीसं च। बायालडवीसहिया, चउसय पण तिग च्छ चउरंसा।।३५।। चत्तासिगविगलमणा, सगंस चउमयर चउद अडवीसं। सगवन्निगसयरिजुया, पणसय दुग चउ इग तिगंसा।।३६।। सइरिसु इगविगलमणा, अयरिगपणवीस पन्न सयसहसं। संपुन्नं बंधंति, भागा इह नत्थि उवरिं तु।।३७।। इगविगला सन्नीहिं, करणवसा जमिह लद्ध तं पुन्नं। गुरुठिइ तेसिं सच्चिय, पलियासंखं सऊणलहू।।३८।। इगविगलाऽबंधा उ, विउव्विए पढम बंध अमणकओ। दुन्नि सया पणसीया, अंसा पंचेव उवर त।।३९।। बंधंति न इगविगला, वेउव्वियछक्क देवनिरयाउं। तिरिया तित्थाहारं, गइत्तसा नरतिगुच्चं च।।४०।। नरयसुरसुहुमविगलत्तिगाणि आहारदुग विउव्विदुगं। बंधहिं न सुरा सायव, थावरेगिदिनेरइया।।४१।। अहुणा भणिमो मूलियरपयडिण ठिइबंधदुविहं पि। सन्निहिं पणिंदिएहिं, जह कइ कीरइ करिस्सइ य।।४२।। मुत्तुमकसायि हुस्सा, ठिइ वेयणियस्स बारसं मुहुत्ता। अट्ठ नामगोयाण, सेसयाणं मुहुत्तंतो।।४३।। मोहे कोडाकोडीउ, सत्तरई वीस नामगोयाणं। तीसियराण चउण्हं, तेतीसयराइं आउस्स।।४४।। दंसण चउविग्घावरणलोहसंजलणहुस्स ठिईबंधो। अंतमुहुत्तं ते अट्ठ, जसुच्चे बारसयसाए।।४५।। (सूक्ष्मार्थसारोद्धार-६४) दो मासा अद्धद्धं, संजलणतिगे पुमट्ठवरिसाणि। बावीसा पयडीणं, लहु ठिइ सन्नीण खवगाणं।।४६।। (सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-७४, कर्मप्रकृति-७७) सेसे सए इगारे, वेउव्विक्कारसे य सन्नीणं। अयरतकोडिकोडी, लहुठिइ नियमा इहं जम्हा।।४७।। चउयाले पयडिसए, गुरुयं तं सन्निणो कुणंति ठिई। बावीसं दसिगाओ, इच्चाइण जा भणियपुव्विं।।४८।। अंतो कोडाकोडी, तित्थाहाराण जिट्ठठिइबंधो। अंतमुहुत्तमबाहा, इयरो संखिजगुणहीणो।।४९।। (सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-७०, शतकप्रकरणभाष्य-३४०,३५६) सुरनिरयमिहुणवज्जा, जीवा बंधंति आउलहु खुड्ड। सुरनिरया अंतमुहू, दसवाससहस्समिहुणा वि।।५।। इगविगल पुव्वकोडिं, परायु अमणो असंखपल्लंसं। संखाओ तिरियमणुया, तिरिनरविसयं तु पल्लतिग।।५१।। (शतकनामा पञ्चमप्राचीनकर्मग्रन्थः -३४) ते दोवि तितीसयरे, निरए मणुया सुरेसु तेतीसं। तीरियाठार सुरेसुं, जं तग्गइ जा सहस्सारं ।।५२।। तिरिनरमिहुण सुराउं, एकं च्चिय तं परं तिपल्लमियं। सुरनिरया उको(क्को)सं, [पुण] पुव्वकोडि तिरिनरेसु।।५३।। सम्मे लहु अंतमुहू, समहिय छावट्ठि अयर गुरुट्टिई। अंतमुहु दुह विमीसे, भणियं पन्नवण तीवीसपए।।५४।। एगिदिमाइबंधो, दुहावि लिहिओऽडवन्नपयडिसए। पन्नवणतिवीसपया, तिउद्देसा सिरिमहिंदेहि।।५५।। (मनःस्थिरीकरण प्रकरण गाथा-७४/७५)
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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