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________________ परिशिष्ट-६ आ.श्रीमहेन्द्रसिंहसूरिरचितः । प्रकृतिबन्धविचारः ॥ (प्रज्ञापनायाः त्रयोविंशतितमपदस्य तृतीयोद्देशात्सङ्कलितः एकेन्द्रियादीनां शताधिकाष्टपञ्चाशत्प्रकृतिबन्धविचारः) भवभवदुहदवनीरं, नमिउं वीरं सुरिंदगिरिधीरं। मूलियरपयडिसमुदयठिइबंधमहं लिहे दुविह।।१।। मुत्तुमकसायि हुस्सा, ठिइ वेयणियस्स बारसं मुहुत्ता। अट्ठट्टनामगोयाण, सेसयाणं मुहुत्तंतो।।२।। मोहे कोडाकोडीउ, सत्तरई वीस नामगोयाणं। तीसियराण चउण्हं, तेतीसयराइं आउस्स।।३।। (प्रवचनसारोद्धार-१२८०, सूक्ष्मार्थसारोद्धार-६४) चऊयाले पगडिसए, इगविगला सन्निणं दुविहबंध। नाउं गुरुठिइसहिया, पढमं लिह पयडि बारसहा।।४।। करणावि सया तित्थाहारगसगसम्ममीसआउचऊ। चउदस मुत्तुं अडवनसया भुयालं सयं गहिय।।५।। बावीसं दसिगाउ. द बार द दतेर दन्नि चउदसिगा। छ पन्नार द सोला, द द्धठारा अट्ट अट्टारा।।६।। इगसट्ठी वीसिक्का, वीसंतीसिक्क सोल चालीसा। एगा उ सत्तरिक्का, सगुरुठिई पयडि बारसिमा।।७।। आइमसंघयणागिइहासरइपुमुच्चसुगइथिरछक्कं। सियमुहुसुरहिमिउलहुरसुरदुगनिढुण्ह बावीसा।।८।। नग्गोहरिसहनारा, हालिदं विलय अद्ध(?) तेराओ। नाराय सादि चउदस, अरुणित्थिकसायमणुयदुर्ग।।९।। सायं छप्पन्नारा, सोलसिगं कुज्जमद्धनारायं। नीलकडुयद्धठारा, कीलियवामणयसुहुमतिगं।।१०।। विगलतिगं अट्ठारा, तसचउ तिरिजुयल निरयजुयलं च। तेयविउव्विय उरलाण सत्त ॥११॥ पढमंतजाइ कुखगइ, कुवन्ननवगं च नीलकडुवजं। पत्तेया य अतित्था, थावर अथिराइछक्कं च।।१२।। छेवढं सोगारइ, भयकुच्छनपुंसनीयगोयं च। इगसट्ठी वीसक्का, विग्घावरणाई अस्सायं।।१३।। वीसंतिसेक्काओ, सोलकसायाउ हुँति चालीसा। मिच्छेगसत्तरिक्का, पयडिविभागे स बारसहा।।१४।। बारसहठावियाणं, पुवुत्तप्पयडिगुरुठिईणं तु। हर भाग मिच्छठिइए, एगिदियमाइबंधकए।।१५।। सव्वत्थवि समसुन्नावगमे सइ बारसोलसठारेसु। दोहिं कुण उवढें, पयडिचउक्कमि पुण एवं।।१६।। अधतेरे पणवीसाए, चउदसे चउदसेहिं उवट्टे। पंचहिं पन्नरसे, अधठारे पणसत्तरिसएणं।।१७।। दस वीस तीस चत्ता, सरि सुलद्धेग दु ति च सगअंसा। बारस सोलट्ठारे, पणतीसंसा छ [सत्त] अट्ठ नव।।१८।। अडवीसंसा पंच उ, अधतेरे चउदसेसु पंचसो। चउदसमअंस तिन्नि उ, पन्नारे पाउ अधठारे।।१९।। एयं इगिदियेहिं, लद्धं इणमेव विगल अमणावि। कमसोलह ति पणवीस, पन्न सय सहस गणियं त।।२ इय करणवसादागय, बंधट्टिईण पच्चयनिमित्तं। मुद्धाण जं तयमिणं, पदसिमो सुहविबोहत्थं।।२१।। अह लिह जंतं तिरि नव, उड्डाहो चउदरेह अट्ठगिह। पयडीसंखा पयडी, गुरुट्टिई भागो य तइयगिहे।।२२।। तुरि एगिदियबंध, पंचमि बेइंदि छट्टि तेइंदी। सत्तमि चउरिदिठिई अमणठिइं अट्ठमे लिहसु।।२३।। दसिगासिगविगलमणा, सत्तं समयर तिसत्तचउदसगं। बायालसयं उवरिं, चउ इग दुग छच्च सत्तंसे।।२६।। बारसिसिग विगलमणा, छप्पण तीसंस अयर चउ अट्ठ। सतरस इगसयरि सय, दसवीसं पंच पन्नरसा।।२७।। अधतेरिगविगलमणा, पणअडवीस सअयर चउ अट्ठ। सतरस अड सयरिसयं, तेर छवीस चउवीस सोलंसा।।२८।। गीतिरियम्। १. २४-२५ तमे गाथाद्वये न दृश्येते ।
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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