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________________ १०० कल्पनियुक्तिः देवगणों का नाम लेने पर भी जब शस्त्र कार्य किया, सभी खिन्न हुए । __रानी प्रभावती ने राजा को आहार के लिए बुलाया । राजा के नहीं आने पर प्रभावती देवी ने दासी को भेजा । उसने राजा के विलम्ब का कारण बताया । दासी से वृत्तान्त ज्ञात होने पर रानी ने विचार किया, “मिथ्यादर्शन से मोहित ये लोग देवाधिदेव से भी अनभिज्ञ हैं। प्रभावती स्नान कर कौतुक मङ्गलकर, शुक्ल परिधान धारणकर हाथ में बलि, पुष्प-धूपादि लेकर वहाँ गयी। प्रभावती ने बलि आदि सब कृत्य कर कहा, “देवाधिदेव महावीर वर्द्धमान स्वामी हैं, उनकी प्रतिमा कराओ।" इसके बाद कुठार से एक प्रहार में ही उस लकड़ी के दो टुकड़े हो गये । उसमें रखी हुई सर्वालङ्कारभूषिता भगवान् की प्रतिमा दिखाई पड़ी । घर के समीप निर्मित मन्दिर में राजा ने उस मूर्ति की प्रतिष्ठा करायी। ___ कृष्णगुलिका नामक दासी मन्दिर में सेविका नियुक्त की गई । अष्टमी और चतुर्दशी को प्रभावती देवी भक्तिराग से स्वयं ही मूर्ति की पूजा करती थी। एक दिन पूजा करते समय रानी को राजा के सिर की छाया नहीं दीख पड़ी । उपद्रव की आशङ्का से भयभीत रानी ने राजा को सूचित किया । और उपाय सोचा कि जिनशासन की पूजा से मरण का भय नहीं रहता है। ___ एक दिन प्रभावती के स्नान-कौतुकादि क्रिया के बाद मन्दिर जाने हेतु शुद्ध वस्त्र लाने का दासी को आदेश दिया । उत्पात-दोष के कारण वस्त्र कुसुंभरंग से लाल हो गया। प्रभावती ने उन वस्त्रों को प्रणाम किया परन्तु उसमें रङ्ग लगा हुआ देखकर वह रुष्ट हो गई और दासी पर प्रहार किया, दासी की मृत्यु हो गयी । निरपराधिनी दासी के मर जाने पर प्रभावती पश्चात्ताप करने लगी कि, दीर्घकाल से पालन किये गये मेरे स्थूलप्राणातिपातव्रत खण्डित हो गये । यही मुझ पर उत्पात है। प्रभावती ने प्रव्रज्या-ग्रहण की आज्ञा हेतु राजा से विनती की। राजा की अनुमति से गृह त्यागकर उसने निष्क्रमण किया । छ: मास तक संयम का पालन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर मृत्यु के पश्चात् वैमानिक देव के रूप में उत्पन्न हुई। राजा को देखकर, पूर्वभव के अनुराग से वह अन्य वेश धारण कर जैनधर्म की प्रशंसा करती है । तापस भक्त होने के कारण राजा उसकी बात स्वीकार नहीं करता था । (प्रभावती) देव ने तपस्वी वेश धारण किया । पुष्पफलादि के साथ राजा के समीप जाकर उसे एक बहुत ही सुन्दर फल भेंट किया । वह फल अलौकिक, कल्पनातीत और अमृतरस के तुल्य था । राजा के पूछने पर तपस्वी ने निकट ही तपस्वी के आश्रम में ऐसे फल उत्पन्न होने की सूचना दी । राजा ने तपस्वी-आश्रम और वृक्ष दिखाने का तपस्वी से अनुरोध किया । ___ मुकुट आदि समस्त अलङ्कारों से विभूषित हो वहाँ जाने पर राजा को वनखण्ड दिखाई
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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