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________________ परिशिष्ट-७ लेकर प्रलाप करने लगा । लोगों के पूछने पर कहता, “पञ्चशैल के विषय में जो वृत्त सुना था उसको देखा और अनुभूत किया ।" श्रावक नागिल उसका समवयस्क था । नागिल ने कहा कि, "जिनप्रज्ञप्त धर्म का पालन करो जिससे सौधर्म आदि कल्पों में दीर्घकाल तक स्थित रहकर वैमानिक देवियों के साथ उत्तम भोग कर सकोगे । इन अल्प स्थिति वाली वाणव्यन्तरियों के साथ भोग करने से क्या प्रयोजन ?" फिर भी उसने निदान सहित इङ्गिनीमरण स्वीकार किया। कालान्तर में वह पञ्चशैल द्वीप पर विद्युन्माली नामक यक्ष हुआ और हासा-प्रभासा (प्रहासा) के साथ भोग करते हुए विचरण करने लगा। नागिल श्रावक भी श्रमण व्रत अङ्गीकार कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर समय व्यतीत करते हुए अच्युतकल्प में सामानिक देव के रूप में उत्पन्न हुआ । किसी समय नन्दीश्वर द्वीप में अष्टाह्निका की महिमा के निमित्त सभी देव एकत्रित हुए। समारोह में देवताओं द्वारा विद्युन्माली देव को पटह (नगाड़ा) बजाने का दायित्व सौंपा गया । अनिच्छुक उसे बलात् लाया गया । पटह बजाते हुए उसे नागिलदेव ने देखा । पूर्वजन्म के अनुराग के कारण प्रतिबोध देने हेतु नागिलदेव ने उसके समीप आकर पूछा, "मुझे जानते हो ?" विद्युन्माली ने कहा, "आप शक्रादि इन्द्रों को कौन नहीं जानता है ?" तब देव ने कहा, "इस देवत्व से भिन्न पिछले जन्म के विषय में कहता हूँ।" विद्युन्माली के अनभिज्ञता प्रकट करने पर देव ने कहा कि, "मैं पूर्वभव में चम्पा नगरी का वासी नागिल था । तुमने पूर्वभव में मेरा कहना नहीं माना इसलिए अल्पऋद्धिवाले देवलोक में उत्पन्न हुए हो ।' विद्युन्माली ने पूछा, "मुझे क्या करना चाहिए ?" अच्युत देव ने कहा, "बोधि के निमित्त जिनप्रतिमा का अवतारण करो ।' विद्युन्माली चुल्लि(ल्ल)हिमवंत पर देवता की कृपा से जाकर गोशीर्षचन्दन की लकड़ी की प्रतिमा लाया । उसे रत्ननिर्मित समस्त आभूषणों से विभूषित किया और गोशीर्षचन्दन की लकड़ी की पेटी के मध्य रख दिया और विचार किया, "इसे कहाँ रखू ?" इधर एक वणिक् की नौका समुद्र-प्रवाह में फँस गयी और छ: मास तक फँसी रही । भयभीत और परेशान वणिक् अपने इष्ट देवता के नमस्कार की मुद्रा में खड़ा रहा । विद्युन्माली ने कहा, "आज प्रात:काल यह वीतिभय नगर के तट पर प्रवाहित होगी । गोशीर्षचन्दन की यह लकड़ी वहाँ के राजा उदायन को भेंटकर इससे नये देवाधिदेव की प्रतिमा निर्मित कराने के लिए कहना ।" देवकृपा सो नौका वीतिभय नगर पहुँची । वणिक् ने राजा के पास जाकर देव के कथनानुसार निवेदन किया और वृत्तान्त कहा । राजा ने भी नगरवासियों को एकत्र किया और वणिक् से ज्ञात वृत्तान्त बताया । वणकुट्टग से प्रतिमा बनाने के लिए कहा गया । ब्राह्मणों ने देवाधिदेव ब्रह्म की प्रतिमा बनाने के लिए कहा । परन्तु कुठार से लकड़ी नहीं कटी । ब्राह्मणों ने कहा, "देवाधिदेव विष्णु की प्रतिमा बनाओ," फिर भी कुठार नहीं चली और इसप्रकार स्कन्ध, रुद्रादि
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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